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(1) HIT:
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मात्रा (१) उ )
(ख) कामोदरी कामादरी
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कामादरी
कामादरी काधादती
द्रष्टव्य है कि अनेक हस्तलिखित प्रतियों में दो मात्राएँ बंगाली लिपि की भाँति लगी मिलती हैं । यह प्रवृत्ति 19वीं शताब्दी तक की प्रतियों में पाई जाती हैं। दोनों मात्राएँ नं. (1) में द्रष्टव्य हैं। यह प्रवृत्ति बीकानेर के 'दरबार पुस्तकालय' में सुरक्षित ग्रन्थों में विशेष मिली हैं
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प्रतीत होता है कि यह गुरुमुखी के प्रभाव का परिणाम है और यह प्रवृत्ति 18वीं शताब्दी और उससे आगे लिखे ग्रन्थों में अधिक मिलती है।
अब हम इन वर्णों में मिलने वाले वैशिष्ट्य को ले सकते हैं : ( 2 ) वर्ण
:
कफ ।
ष प ।
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द्रष्टव्य है कि राजस्थानी में 'ख' वर्ण 19वीं शताब्दी तक की प्रतियों में नहीं पाया जाता। बदले में 'ष' ही पाया जाता है । इसके अपवाद ये हैं : 1. संस्कृत शब्द में ' ख' भी मिलता है, 2. ब्राह्मण प्रतिलिपिकारों ने दोनों का प्रयोग किया है।
सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान
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