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महाजनी, राजस्थानी और गुजराती लिपियाँ भी निकलीं। दक्खिन में इसको नंदिनागरी कहते हैं।
(4) शारदा - भारत के उत्तर-पश्चिम (पंजाब-कश्मीर) में प्रचारित 18वीं सदी तक वहाँ प्रचारित कुटिल लिपि से ही बाद में शारदा लिपि का विकास हुआ। इस लिपि का प्राचीनतम लेख 10वीं सदी ई. का मिलता है। वर्तमान कश्मीरी, टाकरी, गुरुमुखी लिपियों का विकास इसी से हुआ है।
(5) बंगला - 10वीं सदी के आस-पास नागरी लिपि से विकसित हुई। इससे बाद में नेपाली, वर्तमान बंगला, मैथिली और उड़िया लिपियों का विकास हुआ। __(6) उत्तरी के अतिरिक्त, ब्राह्मी का पश्चिमी रूप - यह लिपि काठियावाड़, गुजरात, नासिक, खानदेश, हैदराबाद, कोंकण, मैसूर आदि के लेखों में 5वीं से 9वीं सदी तक मिलती है। पाँचवीं सदी के आस-पास इसका कुछ प्रभाव राजस्थान एवं मध्यभारत पर भी पड़ा। भारत के पश्चिमी प्रदेश में मिलने के कारण ही यह पश्चिमीलिपि कहलाती है।
(7) मध्यदेशी - यह लिपि मध्यप्रदेश, हैदराबाद के उत्तरी भाग और बुंदेलखण्ड में 5वीं से 8वीं सदी तक मिलती है । इस लिपि के अक्षर प्राय: चौकोर होते हैं। ___(8) तेलगू-कन्नड़ी - वर्तमान तेलगू एवं कन्नड़ इसी से निकली है । यह हैदराबाद, मैसूर, मद्रास, बम्बई के दक्खिनी भाग में 5वीं सदी से 14वीं सदी तक प्रचारित रही है।
(9) ग्रंथलिपि - वर्तमान तमिल, मलयालम इसी से विकसित हुई। यह लिपि मद्रास में 7वीं से 15वीं सदी तक प्रचारित रही। संस्कृत ग्रंथों को इसलिपि में लिखने के कारण यह ग्रंथलिपि कहलाती है।
(10) कलिंगलिपि - 7वीं से 11वीं सदी तक इसके लेख मिलते हैं । प्राचीन लेख मध्य प्रदेशी लिपि से और पिछले नागरी, तेलगू, कन्नड़ी तथा ग्रंथलिपि से मिलते है।
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सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान
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