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ब्राह्मी के लेख हैं । खरोष्ठी दाएँ से बाएँ को चलती है । इसके 11 अक्षर - क, ज, द, न, ब, य, र, व, ष, स, ह - समान उच्चारण वाले अरमइक अक्षरों से मिलते-जुलते हैं । अरमइक में 22 अक्षर थे। इसलिए अनुमान है कि "ईरानियों के राजत्व काल में उनके अधीन के हिन्दुस्तान के इलाके में उनकी राजकीय लिपि अरमइक का प्रवेश हुआ हो और उसी से खरोष्ठीलिपि का उद्भव हुआ हो।" अरमइक में भी स्वरों की अपूर्णता तथा ह्रस्व और दीर्घ मात्राओं के भेद का अभाव था। बाद में किसी खरोष्ठ नामक आचार्य (शायद तक्षशिला के) ने इसे संशोधित कर प्रचारित किया, जिससे यह खरोष्ठी कहलाई। इस लिपि का प्रचार पंजाब में तीसरी सदी ई. तक रहा। बाद में विलुप्त हो गई। 6. ब्राह्मी लिपि
भारत में ब्राह्मी लिपि के लेख पाँचवीं सदी ई.पू. प्राप्त होते हैं । भारत में यही सर्वश्रेष्ठ लिपि समझी जाती है । जैनों के पन्नवणासूत्र तथा समवायग सूत्र में जिन 18 लिपियों के नाम आये हैं उनमें खरोष्ठी का भी नाम है। 'ललित-विस्तर' में उल्लेखित 64 लिपियों में प्रथम ब्राह्मी और द्वितीय खरोष्ठी है। लेकिन शुद्धता और सम्पूर्णता की दृष्टि से ब्राह्मी खरोष्ठी से श्रेष्ठ है।
ब्राह्मी को, दिल्ली के अशोक-स्तम्भ पर अंकित ब्राह्मी को, एक व्यक्ति ने यूनानी लिपि मानते हुए अलेक्जेंडर की विजय का लेख माना था। काशी के किसी ब्राह्मण ने एक मनगढन्त भाषा और उसकी लिपि बताई; किसी ने उसे तंत्राक्षर तो किसी ने पहलवी माना । लेकिन बाद में डॉ. प्रिन्सेप आदि विद्वानों के प्रयास से ब्राह्मी अक्षरों के पढ़े जाने पर पिछले समय के सभी लेख पढ़ना आसान हो गया। क्योंकि भारत की समस्त प्राचीन लिपियों का मूल यही ब्राह्मी लिपि है।
7. ब्राह्मी की उत्पत्ति
ब्राह्मीलिपि की उत्पत्ति के बारे में दो प्रकार की विचारधाराएँ मिलती हैं। प्रथम विचारधारा के विद्वानों ने इसे किसी विदेशी लिपि से उत्पन्न माना है, तो दूसरी विचारधारा के विद्वानों ने इसे भारत की अपनी उपज माना है।
1. सामान्य भाषा विज्ञान : डॉ. बाबूराम सक्सेना, पृ. 256 2. भारतीय प्राचीन लिपिमाला : डॉ. ओझा, पृ. 39-40
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सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान
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