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443 का होगा। इसकी लिपि अशोक के लेखों की लिपि से पहले की प्रतीत होती है। इसमें 'वीराय' का 'वी' अक्षर है। उक्त 'वी' में जो 'ई' की मात्रा का चिह्न है वह न तो अशोक के लेखों में और न उनसे पीछे के किसी लेख में मिलता है, अतएव वह चिह्न अशोक से पूर्व की लिपि का होना चाहिए, जिसका व्यवहार अशोक के समय तक मिट गया होगा और उसके स्थान में नया चिह्न व्यवहार में आने लग गया होगा। दूसरे अर्थात् विप्रावा के लेख से प्रकट होता है कि बुद्ध की अस्थि शाक्य जाति के लोगों ने मिलकर उस स्तूप में स्थापित की थी। इस लेख को बूलर ने अशोक के समय से पहले का माना है। वास्तव में यह बुद्ध के निर्वाण-काल अर्थात् ई. पूर्व 487 के कुछ ही पीछे का होना चाहिए। इन शिलालेखों से प्रकट है कि ई. पूर्व की पाँचवीं शताब्दी में लिखने का प्रचार इस देश में कोई नई बात न थी।'' ___"बूलर इस अनुमान को मानते हैं कि वैदिक समय में लिखित पुस्तकें मौखिक शिक्षा की मदद के लिए काम में लाई जाती थीं। यहाँ ताडपत्र, भोजपत्र आदि लिखने की सामग्री प्राचीनकाल से ही प्रकृति ने प्रचुर मात्रा में दे रक्खी थी और ई.पू. चौथी सदी में रुई से कागज बनाया जाने लगा था। इस विवरण से यही एक निष्कर्ष संभव है कि भारतीय आर्य लोगों को लिखने की कला काफी प्राचीनकाल से मालूम थी। यदि ऋग्वेद के अन्तिम मंडल के सूक्तों को ई.पू. 1200 का भी मान लिया जाए तो उस समय भी यह कला भारतीयों को ज्ञात थी। 2 5. खरोष्ठी लिपि ___भारत में प्राचीनलिपियों में एक लिपि खरोष्ठी भी है। अशोक के शहबाजगढ़ी और मनसेहरा वाले लेख खरोष्ठीलिपि में हैं। इस लिपि का कोई दूसरा लेख, जो अशोक से पूर्व का हो, उपलब्ध नहीं होता। अशोक के पूर्व इस लिपि का एक-एक अक्षर ईरानी सिक्कों पर मिलता है, जो ई.पू. चौथी सदी के माने जाते हैं। ब्राह्मी लिपि की तुलना में खरोष्ठीलिपि के लेख बहुत कम हैं। ये भी भारत के पश्चिमोत्तर प्रदेश और पंजाब में ही पाए गए हैं, शेष भाग में 1. प्राचीन लिपिमाला : डॉ. गौ. ही. ओझा, पृ. 2,3 2. सामान्य भाषा विज्ञान : डॉ. बाबूराम सक्सेना, पृ. 255-56
पाण्डुलिपि की लिपि : समस्या और समाधान
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