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सकते, न अकाट्य प्रमाणों से पुष्ट हैं ।' एक और बात - सिंधु लिपि में मिश्र की चित्रलिपि तथा सुमेर की लिपि के साथ ब्राह्मीलिपि के साम्य भी हैं । इससे कल्पना की गयी कि इसमें मिश्र और समेर के उधार लिए शब्द और वर्ण हैं। इसका कारण निम्नलिखित ऐतिहासिक परम्पराएँ हो सकती हैं -
(1) प्राचीन मिश्र की सभ्यता के लोग पश्चिमी एशिया से आये थे।
(2) यूनानी प्रमाणों से फोनेशियन्स, जो कि प्राचीनकाल के महान सामुद्रिक यात्रा-दक्ष और संस्कृति-प्रसारक लोग थे, त्यर (Tyr.) में उपनिवेश बनाकर रहते थे, जो कि पश्चिमी एशिया का बड़ा बन्दरगाह था।
(3) सुमेरियन लोग स्वयं भी समुद्र के मार्ग से बाहर से आये थे।
(4) प्राचीन भारतीय परम्पराओं के अनुसार आई जातियाँ उत्तर-पश्चिमी भारत से उत्तर की ओर और पश्चिम की ओर गयी थीं।
इन परिस्थितियों में कहा जा सकता है कि या तो आर्य लोग या उनके असुर नाम के बन्धुओं ने सिंधुघाटी की लिपि का निर्माण किया। वे ही उसे पश्चिमी एशिया और मिश्र में ले गये थे। इस प्रकार संसार के उन भागों में लिपि के विकास को प्रोत्साहित किया। लेकिन सिंधुघाटी-सभ्यता विषयक विविध समस्याएँ अभी समस्याएँ ही बनी हुई हैं। यह सभ्यता भी केवल सिंधुघाटी तक सीमित नहीं थी, अब तो मध्यप्रदेश और राजस्थान की खुदाइयों में भी इसके अनेक प्रमाण मिले हैं। लगता है यह किसी महान जलप्लावन से पूर्व की संस्कृति एवं सभ्यता थी।
ऐतिहासिक काल की सामग्री में अशोक के शिलालेखों के पूर्व के केवल दो छोटे-छोटे शिलालेख प्राप्त हुए हैं ; एक अजमेर के बड़ली गाँव में और दूसरा नेपाल की तराई में गोरखपुर के पास पिप्रावा नामक स्थान पर। "पहला एक स्तम्भ पर खुदे हुए लेख का टुकड़ा है, जिसकी पहली पंक्ति में 'वीर () य भगव (त)' और दूसरी में 'चतुरासिति व (स)' खुदा है । इस लेख का 84वाँ वर्ष जैनों के अन्तिम तीर्थंकर वीर (महावीर) के निर्वाण संवत् का 84वाँ वर्ष होना चाहिए। यदि यह अनुमान ठीक हो तो यह लेख ई. पूर्व (527-84) 1. Cultural contacts between Aryon & Dravodians : Nilkanth Shastri, P. 2 2. Indian Paleography : Dr. R.B. Pandey, P. 34
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सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान
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