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भारत में ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियाँ विकसित हुईं । सम्राट अशोक के ई.पू. तीसरी सदी से लेकर तीसरी सदी ई. तक के खरोष्ठी के लेख इसके प्रमाण हैं। ये पश्चिमोत्तर भारत में प्राप्त हुए हैं। तीसरी सदी ई. में खरोष्ठी चीनी तुर्किस्तान में भी पहुँच गई थी। कहा जाता है कि अरमी लिपि का भारतीय रूपान्तरण ही खरोष्ठी लिपि है । ब्राह्मी लिपि से भारत की प्रायः सभी लिपियाँ विकसित हुई हैं। 4. देवनागरी लिपि और पूर्ववर्ती लिपियाँ
भारतीय भाषाओं के लिए प्रचलित देवनागरी लिपि से पूर्व भारत में निम्नलिखित लिपियाँ प्रचलित थीं -
(1) कुटिललिपि : छठी शताब्दी से 10वीं शती तक।
(2) गुप्तलिपि : सामान्यतः इसका समय गुप्त-वंश का राजत्वकाल माना जाता है । अशोक के अभिलेख इसी लिपि में लिखे गये थे। इस लिपि का समय 500 ई.पू. से 350 ई. तक माना जाता है।
(3) ब्राह्मीलिपि : मोहनजोदडो और हड़प्पा की खुदाई में प्राप्त सामग्री, जो ईस्वी सन् से पूर्व कई हजार वर्ष पहले की है, में भी कुछ लेख जहाँ-तहाँ अंकित हैं । ये ऐसी लिपि में है जो ब्राह्मी और खरोष्ठी से मेल नहीं खाती और उससे एकदम भिन्न है। इस लिपि में चित्रलिपि एवं ध्वनिलिपि दोनों ही प्रयुक्त हैं । अधिकांश विद्वानों का कहना है कि "यह सारी सामग्री ऐसी सभ्यता की द्योतक है जिसका वैदिक आर्य सभ्यता से कोई संबंध नहीं।" क्योंकि आज तक भी मोहनजोदड़ो की लिपि की भाषा का कुछ भी ज्ञान नहीं है। इसलिए इसे ठीक-ठीक उद्घाटित नहीं किया जा सका। सच तो यह है कि "अब ये परिकल्पनाएँ (हाइपोथीसिस) ही हैं। अभी तक भी हम सिन्धुघाटी की लिपि पढ़ सके हों, ऐसा नहीं लगता।''2
इस सबका कारण यह है कि यह सभ्यता आर्यों के भारत आगमन से पूर्व की द्रविड़ सभ्यता है। आर्यों के आगमन से पूर्व द्रविड़ सारे भारतवर्ष में बसे हुए थे। अब आर्यों के आगमन का सिद्धान्त तथा द्रविड़ों का आर्यों से भिन्न नस्ल का होने का नृतात्विक सिद्धान्त, ये दोनों ही पूर्णत: सिद्ध प्रमेय नहीं माने जा 1. सामान्य भाषा विज्ञान : डॉ. बाबूराम सक्सेना, पृ. 253 2. पाण्डुलिपिविज्ञान : डॉ. सत्येन्द्र, पृ. 194
पाण्डुलिपि की लिपि : समस्या और समाधान
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