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कोरिन्थ एवं अथेन के ई.पू. छठी सदी के लेख हैं । ई.पू. चौथी सदी तक आतेआते इन लेखों के पूर्वी और पश्चिमी - दो विभाग मिलते हैं। ग्रीक लिपि के वर्गों के नाम सामी हैं । रोम के उत्थान के पूर्व इटली और आस-पास के प्रदेशों में एत्रुस्की भाषा का प्रयोग मिलता है । इसके कुछ प्राचीन लेख भी उपलब्ध हुए हैं । इस लिपि के संबंध में लिपि वैज्ञानिकों का मत है कि यह इटली में 9वीं सदी ई.पू. में एशिया माइनर से आई थी और एशिया माइनरवासियों ने इसे ग्रीस से प्राप्त किया था। रोम से प्राप्त मिट्टी के बर्तनों पर लैटिन भाषा के पुराने लेख ई.पू. चौथी सदी के प्राप्त हुए हैं। इनकी लिपि ग्रीक और एत्रुस्की लिपि का मिलाजुला रूप है। बाद में इसे रोमनलिपि कहा जाने लगा। प्रारंभ में रोमनलिपि में 23 वर्ण थे जो 14वीं-15वीं सदी तक आते-आते 26 हो गये। यूरोप के उत्तरी प्रदेशों की रूनी लिपि पर काले सागर पर बसे हुए किसी ग्रीक उपनिवेश के वासियों का ई.पू. 600 में प्रभाव पड़ा था। इससे ही केल्टी की ओघ लिपि (5वीं सदी) का विकास हुआ। ग्रीक लिपि से 9वीं सदी में सिरिली एवं ग्लेगोलिथी लिपि का विकास माना जाता है। __ आरमीनी लिपि के प्रमाण चौथी सदी से प्राप्त होते हैं। कुछ लोग इसे ईराकी या ग्रीक स्रोत की बताते हैं । अरमी लिपि के सबसे पुराने लेख लगभग 800 ई.पू. के उत्तरी सीरिया के सिन्दली नामक स्थान से प्राप्त हुए हैं । यह उत्तरी सामी की प्रधान लिपि थी। इससे हेब्रू लिपि का विकास हुआ। अरबी लिपि भी अरमी से ही विकसित हुई। इसके 5वीं सदी ई.पू. तक के प्रमाण मिलते हैं। 7वीं-8वीं सदी तक आते-आते इसके कूफ़ी और नस्खी - दो रूप हो गये। वर्तमान अरबी लिपि नस्खी का ही विकसित रूप है। ईरान में हरख्मानी बादशाहों ने कीलाक्षर लिपि का प्रयोग किया था, किन्तु सिकन्दर की विजय के बाद वहाँ अरमी आ गई। सासानी शासकों की लिपि 'पहलवी' कहलाई। इस प्रकार डॉ. बाबूराम सक्सेना के अनुसार सामी जातियों ने लिपि का प्रयोग मिश्र देशवासियों से सीखा
और सामी से अन्य जातियों ने। अनुमान है कि ई.पू. प्रथम या द्वितीय सदी में कुछ सामी जातियाँ मिश्र देश के दक्षिणी भाग में निवासियों के सम्पर्क में आईं और उन्हीं से लिपि का व्यवहार सीखा।"
1. सामान्य भाषा विज्ञान, पृ. 252
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सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान
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