SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विदेशी लिपि से उत्पत्ति माननेवाले विद्वान - डॉ. विल्सन, प्रिंसेप, आफैडमूलर, सेनार्ट आदि विद्वानों ने ब्राह्मी की उत्पत्ति ग्रीकलिपि या फ़ोनीशी लिपि से मानी थी। डॉ. डीके ने ब्राह्मी की उत्पत्ति असीरी कीलाक्षरों से किसी दक्खिनी सामी लिपि द्वारा हुई माना है। लेकिन अब कोई भी विद्वान् असीरी या चीनी लिपि से ब्राह्मी की उत्पत्ति नहीं मानते। विलियम जोंस, वेबर, टेलर, बूलर आदि विद्वानों ने ब्राह्मी की उत्पत्ति सामी के उत्तरी-दक्खिनी रूप से बतलाई है। इसमें भी वे (बूलर) उत्तरी सामी से ही ब्राह्मी की उत्पत्ति मानते हैं। लेकिन इस प्रक्रिया में भी बूलर ने अटकलें ही लगाई हैं, जो मान्य नहीं। टेलर दक्खिनी सामी से ब्राह्मी की उत्पत्ति मानते हैं। लेकिन यह मत भी मान्य नहीं हुआ। 8. ब्राह्मी भारतीय लिपि है। इस मत के मानने वाले विद्वानों में एडवर्ड टामस, डासन, कनिंघम, गौरीशंकर हीराचंद ओझा और डॉ. तारापुरवाला आदि विद्वान हैं। इन विद्वानों का मानना है कि ब्राह्मीलिपि "भारतवर्ष के आर्यों की अपनी खोज से उत्पन्न किया हुआ मौलिक आविष्कार है । इसकी प्राचीनता और सर्वांग सुन्दरता से चाहे इसका कर्ता ब्रह्मदेवता माना जाकर इसका नाम ब्राह्मी पड़ा, चाहे साक्षर समाज ब्राह्मणों की लिपि होने से यह ब्राह्मी कहलाई हो। और चाहे ब्रह्म (ज्ञान) की रक्षा के लिए सर्वोत्तम साधन होने के कारण इसको यह नाम दिया गया हो। इस देश में इसकी विदेशी उत्पत्ति का सूचक कोई प्रमाण नहीं मिलता।'' अत: यह कहा जा सकता है कि किसी भी ज्ञात विदेशी लिपि से ब्राह्मी की उत्पत्ति नहीं हुई। 9. ब्राह्मी वर्णमाला प्रिंसेप आदि विद्वानों के प्रयास से अशोककालीन ब्राह्मीलिपि की जिस वर्णमाला को खोज निकाला है, वह इस प्रकार है - अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ अं स .. - AA 1 y' मात्रा ।। - - - - - 1. सामान्य भाषा विज्ञान : डॉ. बाबूराम सक्सेना, पृ. 259 पाण्डुलिपि की लिपि : समस्या और समाधान 121 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy