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________________ में लिपि का विकास एक जटिल प्रक्रिया है। क्योंकि 'चित्र' दृश्य वस्तुबिम्ब से जुड़े होते हैं । इन वस्तुबिम्बों का ध्वनि से सीधा संबंध नहीं होता है । वस्तु को नाम देने पर चित्र ध्वनि से जुड़ता है। इतना होने पर ही ध्वनि और लिपि-वर्ण परस्पर सम्बद्ध हो सकेंगे और आगे चलकर मात्र एक ध्वनि का प्रतीक हो सकेगा।' डॉ. बाबूराम सक्सेना कहते हैं - "इस तरह प्रथम सम्पूर्ण बात या वाक्य का बोध कराने वाले एक चित्र, फिर वाक्य के विभिन्न स्थूल भावों के अलगअलग चित्र, फिर इन चित्रों से विकसित हुए उनके उद्बोधक संकेत, और इनसे अक्षर, लिपि के विकास में यह क्रम रहा। 2 अतः लेखन और लिपि के विकास क्रम में पहला चरण है - बिम्ब अंकन, दूसरा है - बिम्बलिपि, तीसरा है - रेखाकार चित्रलिपि, चौथा है - बिम्बलिपि और रेखाचित्र लिपि का समन्वय, अर्थात् चित्रलिपि, पाँचवाँ है - प्रतीक चित्राकृति तथा छठा है - ध्वनि (वर्ण) । अब लिपि पूर्णतः ध्वनिमूलक हो गई है । वस्तुत: चित्रलिपि का उदय मिश्र में 3100 ई.पू. हुआ होगा। मिश्र में इस लिपि को 'हिअरोग्लाफिक' (पवित्र अंकन) लिपि कहते हैं । यूनान में इसे 'दैवी - शब्द' (Gods Words) कहा जाता है । यह मिश्र की प्राचीन लिपि है । इसका उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों में होता रहा होगा। मिश्र के अलावा हिट्टाइट, प्राचीन क्रीट, ऐस्किमो जाति और अमेरिकन इण्डियनों की प्राचीन लिपि चित्रलिपि ही थी । ध्वनिमूलक चित्रलिपि की वर्णमाला के दो भेद हैं (1) अक्षरात्मक (Syllabic) - जैसे देवनागरी लिपि का 'क' (क् + अ) । चीनी भी । (2) वर्णात्मक (Alphabetic), जैसे- रोमनलिपि का 'K' आज विश्व में लिपियाँ प्रायः तीन रूपों में पाई जाती हैं। (1) दायें से बाएँ लिखी जाने वाली- फारसी (2) बाएँ से दाएँ लिखी जाने वाली देवनागरी, रोमन । (3) ऊपर से नीचे की ओर लिखी जाने वाली - चीनी लिपि । 1. पाण्डुलिपिविज्ञान : डॉ. सत्येन्द्र, पृ. 177 2. सामान्य भाषा विज्ञान, पृ. 247 पाण्डुलिपि की लिपि : समस्या और समाधान Jain Education International For Private & Personal Use Only 111 www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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