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था, तब एक गुप्त (कोड भाषा) भाषा का संकेतों द्वारा प्रयोग करते थे। इस संदर्भ में प्रचलित काव्यांश इस प्रकार है -
अहिफन कमल चक्र टंकारा। तरुवर पवन युवा सुस्कारा॥ अंगुलिन अच्छर चुटकिन मात्रा।
कह हनुमंत सुनहु सौमित्रा॥ (कहीं-कहीं "राम कहे लक्ष्मण से वार्ता" भी बोला जाता है।)
अर्थात् हाथ के द्वारा साँप के फन का आकार बनाओ, जिसका अर्थ संपूर्ण स्वर एवं अं अः होता है। फिर हाथ से कमल के फूल का संकेत करो, जिसका अर्थ क वर्ग, चक्र का अर्थ च वर्ग, टंकार का अर्थ ट वर्ग, तरुवर का अर्थ त वर्ग, पवन का अर्थ प वर्ग, युवा का अर्थ य र ल व, सुस्कार का अर्थ समस्त ऊष्म ध्वनियाँ, अँगुलियाँ उठाकर दिखाने का अर्थ वर्ग का कौन अक्षर और चुटकी बजाकर-हस्व मात्रा हो तो एक और दीर्घ मात्रा हो तो दो चुटकी मात्रा का बोध करवाया जाता है। यह सारी प्रक्रिया संकेतों के द्वारा ही दूर बैठे दोस्त से करते रहते हैं । उत्तरी अमरीका में बहुत बाद तक संकेतों के द्वारा संदेश दिये जाते थे। सर्वप्रथम अपनी आदिम अवस्था में मनुष्य ने गुफा और कन्दराओं में चित्र बनाना ही सीखा था। इसके बाद चित्रों के माध्यम से वह अन्य बातें भी दर्शाने लगा होगा। इस प्रकार सर्वप्रथम 'चित्र-लिपि' का प्रारंभ हुआ। अर्थात् भाषा से पूर्व चित्रलिपि का आधार वस्तुबिम्ब ही था। इस प्रकार चित्र लिपि ही सबसे प्राचीन लिपि है।
इतिहास साक्षी है कि प्रारंभ में मानव ने आनुष्ठानिक टोने के चित्रों से आगे बढ़कर उसने चित्रलिपि के माध्यम से वस्तुबिम्बों की रेखाकृतियाँ पैदा की। मिश्र की चित्रलिपि इसका अच्छा उदाहरण कही जा सकती है। "मिश्र देश में प्रचलित चित्रलिपि से भाव का व्यक्तिकरण अधिक आसानी से हो जाता था। दौड़ते हुए बछडे के पास ही पानी का भी चित्र, प्यास के भाव का उदबोध कराता था।" अत: कहा जा सकता है कि मिश्र की प्राचीन लिपि दो प्रक्रियाओं के योग से अपना रूप ग्रहण कर रही थी। चित्रों से विकास पाकर ध्वनि-प्रतीकों के रूप 1. सामान्य भाषा विज्ञान : डॉ. बाबूराम सक्सेना, पृ. 245
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सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान
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