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में स्मृति बाकी रह सकती है। पर सदा यह संभव नहीं कि उसके निकटस्थ संबंधी उसके पास हों। यदि उसने कोई बात अन्तस्तल में छिपा रक्खी है और उसके बच्चे छोटे-छोटे हैं तो वह अपनी बात की स्थिति किस प्रकार छोड़ जाये?" इस कारण भी लिपि का महत्व बढ़ जाता है।
यह हम सब जानते हैं कि व्याकरण और लिपि का जन्म भाषा के जन्म के बाद होता है । जैसे बच्चा बोलना तो पहले सीखता है, लेकिन लिखना और पढ़ना बाद में ही संभव होता है। दुनिया में अनेक भाषाएँ हैं और उनकी अनेक लिपियाँ हैं; क्योंकि लिपि का संबंध चिह्नों से है। 'चिह्न' को ही अक्षर या अंग्रेजी में 'अल्फाबेट' कहते हैं। ये 'अक्षर' भाषा की किसी ध्वनि के चिह्न होते हैं । अतः लिपि के जन्म से पूर्व भाषा-भाषियों को भाषा के विश्लेषण हेतु उस भाषा में कुल कितनी ध्वनियाँ हैं, जिनसे शब्द का निर्माण हो सकता है, का ज्ञान होना आवश्यक है। भाषा का जन्म वाक्य रूप में होता है। विश्लेषक बुद्धि के विकसित होने पर भाषा को अलग-अलग अवयवों में बाँटा जाता है। उन अवयवों में फिर शब्दों को पहचाना जाता है। 'शब्द' अर्थवान होकर ही भाषा के अवयव बनते हैं । कालान्तर में अर्थ में विकार भी उत्पन्न होते रहते हैं । तब शब्द महत्ववान हो उठता है। शब्द की इकाइयों से 'ध्वनितत्व' तक पहुँचा जाता है। 'ध्वनि' (श्रव्य) को दृश्य बनाने हेतु चिह्नों (लिपि चिह्नों) की कल्पना की जाती है। क्योंकि मूलस्वरूप से भाषा श्रोतेन्द्रिय का विषय है।
2. लिपि का विकास-क्रम ___अल्फाबेट्स या वर्णमाला से पूर्व लिपि का आधार 'चित्र' ही थे। चित्रों के माध्यम से मानव अपनी बात ध्वनि-निर्भर वर्णमाला से पूर्व कहने लगा था। क्योंकि चित्रलिपि से भाव का व्यक्तीकरण अधिक आसानी से हो जाता था। 'चित्र' का संबंध ध्वनि या शब्दों से नहीं वरन् वस्तु से होता है । वस्तुतः चित्र वस्तु की प्रतिकृति होते हैं । भाषा से पूर्व मनुष्य भावाभिव्यक्ति के लिए संकेतों' से काम लेता था। संकेत से अभिप्राय है, मनुष्य जिस वस्तु को चाहता है उस ओर, उसका संकेत कर बताता है। गूंगे की भाषा ऐसी ही वस्तु-संकेत भाषा होती है। हमें याद है, बचपन में जब अपने मित्रों में किसी गुप्त संदेश को देना होता 1. सामान्य भाषा विज्ञान, बाबूराम सक्सेना, सन् 1965, पृ. 245
पाण्डुलिपि की लिपि : समस्या और समाधान
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