SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इसी प्रकार स्थूलाक्षरी पाण्डुलिपि में मोटे या बड़े अक्षरों का प्रयोग किया जाता है, जो मंददृष्टि पाठकों के लिये पढ़ने में सुविधाजनक रहती है। इन प्रकारों के अतिरिक्त कुछ अन्य प्रकार भी हैं जिनका आजकल अनुसंधानकर्ता अपनी खोज रिपोर्टों में उल्लेख किया करते हैं, जैसे - (1) पत्राकार पाण्डुलिपियाँ : खुले पत्रों के रूप में। (2) पोथी : कागजों को बीच में मोड़कर सिली हुई। (3) गुटका : आकार में छोटे पन्नों की पोथी को सीकर बनाया जाता है। (4) पोथो : बीच से सिली हुई बृहदाकार पोथी, जिसमें अनेक पाण्डुलिपियाँ लिपिबद्ध हो सकती हैं, पोथो कहलाती है। (5) पानावली : अधिक लम्बी एवं कम चौड़ी बहीनुमा पोथी को पानावली कहते हैं। उपर्युक्त प्रकारों को दो वर्गों में बाँट सकते हैं - (1) पत्र-रूप में, (2) जिल्द के रूप में। गुटका, पोथो, पोथी दूसरे वर्ग की पाण्डुलिपियाँ हैं। शिलालेखीय प्रकार __पाण्डुलिपियों के प्रकारों के बाद कुछ बातें शिलालेखीय हस्तलेखों के सम्बन्ध में भी विचारणीय हैं। शिलालेखों की दृष्टि से प्रायः सम्राट अशोक के शिलालेख सबसे प्राचीन माने जाते हैं। ये चार प्रकार के हैं - 1. स्तंभ लेख 2. चट्टान पर खुदे हुए लेख 3. गुफाओं के भीतर खुदे हुए लेख 4. फुटकर लेख इन शिलालेखों की लिपि (ब्राह्मी) के अक्षर सीधे-सादे एवं अलंकरण रहित होने के कारण, ये लिपि की प्रारंभिक अवस्था के द्योतक कहे जा सकते हैं। कुछ शिलालेख खरोष्टी लिपि में भी प्राप्त होते हैं। ऐतिहासिक महत्ता वाले इन शिलालेखों के वर्णित विषय निम्न प्रकार हो सकते हैं - 1. अनुसंधान के मूल तत्व, आगरा, प्रो. उदयशंकर शास्त्री का लेख 'शिलालेख और उनका वाचन, पृ. 681 पाण्डुलिपि : प्रकार 105 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy