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________________ लिखित पृष्ठ हाथी की सैंड के आकार का दिखाई देता है । इसमें ऊपर की पंक्ति सबसे बड़ी होती है और बाद वाली क्रमशः दोनों ओर से छोटी होती जाती है। अन्तिम सबसे छोटी पंक्ति के लिखने के बाद पूरा पृष्ठ हाथी की शृंड के आकार का दिखने लगता है। 3. चित्र-सज्जा के आधार पर प्रायः पाण्डुलिपि में चित्र-सज्जा दो दृष्टियों से की जाती है - (क) सजावट के लिए, (ख) संदर्भगत उपयोग के लिए। ये दोनों ही प्रकार एक स्याही में भी हो सकते हैं और विविध रंगों की स्याही में भी। भारत में पाण्डुलिपियों में चित्रांकन की प्राचीन परम्परा रही है। 11वीं शती से 16वीं शती के मध्य पाण्डुलिपि-चित्रशैली का अधिक विकास हुआ। इस चित्रशैली को विद्वानों ने 'अपभ्रंश शैली' नाम दिया है। पं. उदयशंकर शास्त्री कहते हैं - "जैन ताल पोथियों के चित्र अपभ्रंश शैली के हैं, जिनमें कहीं-कहीं प्रतीत होता है कि ये अपनी आरंभिक शैली में हैं पर पालपोथियों (पाल राजाओं के राज्यकाल की) के चित्र निश्चय ही अजन्ता शैली के प्रतीत होते हैं। डॉ. रामनाथ का भी यही मत है। वे कहते हैं - "मुख्यत: ये चित्र जैन संबंधी पोथियों (पाण्डुलिपियों) में बीच-बीच में छोड़े हुए चौकोर स्थानों में बने हुए मिलते हैं। इस दृष्टि से राजस्थान में जैसलमेर के ग्रंथ भण्डार विशेष उल्लेखनीय हैं । वहाँ की सचित्र 15वीं शती की एक कल्पसूत्र एवं कालकाचार्य कथा की प्रति का विवरण साराभाई नवाब ने प्रकाशित किया है। इस प्रकार अपभ्रंश शैली की चित्र कला में जैन धर्मग्रन्थों का बड़ा भारी योगदान रहा है। बादशाह अकबर के शासनकाल में चित्र-सज्जा शैली का विशेष विकास हुआ। इस प्रकार अब तक चित्रकला की तीन शैलियाँ सामने आ गई थीं - (1) अपभ्रंश शैली, (2) राजस्थान शैली, (3) मुग़ल शैली। जैन ग्रंथों के माध्यम से विकसित अपभ्रंश शैली के दो रूप मिलते हैं - एकमात्र अलंकरण सम्बन्धी - 1062 ई. के 'भगवती सूत्र' नामक ग्रंथ में केवल अलंकरण ही हैं। 1. अनुसंधान के मूल तत्व, आगरा, पृ. 57 2. मध्यकालीन भारतीय कलाएँ एवं उनका विकास, पृ. 43 3. शोध-पत्रिका, वर्ष 32, अंक 2, पृष्ठ 67 पाण्डुलिपि : प्रकार 103 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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