________________
(ख) कच्छपी : कछुए के आकार का ऐसा ग्रंथ जो किनारों पर संकरा तथा बीच में चौड़ा होता है। इनके किनारे या छोर या तो गोलाकार होते हैं या तिकोने। इस प्रकार के आकार की पाण्डुलिपि कच्छपी कहलाती है।
(ग) मुष्टी : चार अंगुल आकार की, मुट्ठी में पकड़ी जाने वाली लघु पाण्डुलिपि को मुष्टी कहते हैं। हैदराबाद के सालारजंग संग्रहालय में एक इंच माप की पाण्डुलिपियाँ सुरक्षित हैं । हमने अपने हस्तलिखित ग्रंथों की खोज करने के सिलसिले ऐसी मुष्टी आकार की 'गीता' भी कहीं देखी थी।
(घ) सम्पुटफलक : सचित्र काष्ठ पट्टिकाओं पर लिखित पाण्डुलिपि को सम्पुटफलक कहते हैं।
(ङ) छेदपाटी : लम्बे-चौड़े, परन्तु संख्या में कम (मोटाई कम) पत्रों की पाण्डुलिपि को छेदपाटी या छिवाड़ी कहते हैं। 2. लेखन-शैली के आधार पर
लेखन-शैली की दृष्टि से पाण्डुलिपि के निम्नलिखित चार प्रकार होते हैं - (1) पृष्ठ के रूप-विधान की दृष्टि से, (2) चित्र-सज्जा की दृष्टि से, (3) सामान्य स्याही (काली) से भिन्न स्याही में लिखित, (4) अक्षराकार की दृष्टि से।
(1) पृष्ठ के रूप-विधान की दृष्टि से पाण्डुलिपि के तीन भेद किये जाते हैं - (क) त्रिपाट, (ख) पंचपाट, (ग) शुंड (शृंड)। __ (क) त्रिपाट - जब पाण्डुलिपि का पृष्ठ तीन भागों में बाँट कर लिखा गया हो, उसे त्रिपाट कहा जाता है। जिस पाण्डुलिपि में पृष्ठ के ऊपर-नीचे छोटे अक्षरों में टीका या अर्थ लिखा जाये और मध्य भाग में मूलग्रंथ के श्लोक आदि मोटे अक्षरों में लिखे गये हों, उसे त्रिपाट पाण्डुलिपि कहते हैं।
(ख) पंचपाट - त्रिपाट की तरह पंचपाट में भी पृष्ठ के 5 भाग कर लिखा जाता है। त्रिपाट शैली के अतिरिक्त दाएँ-बाएँ के हाशियों में भी कुछ लिखकर पंचपाट बनाया जाता है।
(ग) शुंड - शुंड या शृंड आकार की पाण्डुलिपियाँ लिखी तो जाती थीं, किन्तु वे आजकल उपलब्ध नहीं हैं। इस प्रकार की पाण्डुलिपि में लेखक द्वारा
102
सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org