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________________ 2. कोमल लिप्यासन (क) ताड़पत्रीय : ताड़पत्रीय लेख दो प्रकार के प्राप्त होते हैं - (1) लेखनी-लिखित, (2) शलाका-कोरित। प्रथम प्रकार के उत्तर भारत में अधिक प्राप्त हुए हैं, जबकि दूसरे प्रकार के दक्षिण भारत में 15वीं शती पूर्व के मिलते हैं । ताड़पत्र को लिप्यासन बनाने से पूर्व उसे उबालकर शंख या कौड़ी से घिस कर चिकना किया जाता था। फिर लोहे की शलाका या कलम से उस पर कुरेदते हुए अक्षर लिखे जाते थे। इसके बाद उन पर स्याही लेप कर अक्षर उभारे जाते थे। इस प्रकार की लेखन-परम्परा दक्षिण भारत में प्राचीनकाल से रही है। उत्तर भारत में लेखनी द्वारा लिखने की परम्परा रही है। यद्यपि ताड़पत्रीय लेख दक्षिण भारत में अधिक लिखे जाते थे; किन्तु गर्म जलवायु होने के कारण वे जल्दी नष्ट हो जाते थे। कश्मीर, नेपाल, गुजरात और राजस्थान आदि ठण्डे एवं सूखे जलवायु वाले प्रदेशों में ताड़पत्रीय लेखों की अधिकता मिलती है। ताड़पत्रीय लेखों को कपड़े आदि में न बाँध कर मुक्त रूप से ही रखा जाता था। ताडपत्रीय प्राचीन लेख - प्रो. गैरोला वाचस्पति के अनुसार पाशुपत मत के आचार्य रामेश्वरध्वज द्वारा लिखित 'कुसुमाञ्जलि टीका' तथा 'प्रबोधसिद्धि' पहली-दूसरी सदी के आसपास लिखी गई प्राचीनतम ताड़पत्रीय पाण्डुलिपियाँ हैं। इसी प्रकार डॉ. लूडर्स ने भी दूसरी शती की स्याही से लिखी हुई ताड़पत्रीय नाटक की प्रति के त्रुटित अंश को छपवाया था। इसके बाद जापान के होरिमूजि मठ में, मध्य भारत से ले जाये गए दो बौद्ध ग्रंथ - 'प्रजापारमिता हृदय सूत्र' एवं उष्णषविजयधारिणी' - छठी शताब्दी में लिखित ताड़पत्रीय रचनाएँ रखी हुई हैं। नेपाल में भी 'स्कंदपुराण' (7वीं सदी) और लंकावतार (906-7 ई. में लिखित) ताड़पत्रीय ग्रंथ सुरक्षित हैं। कैम्ब्रिज के पाण्डुलिपि संग्रहालय में परमेश्वर तंत्र' की ताड़पत्रीय प्रति 859 ई. में लिखित सुरक्षित है। राजस्थान के जैसलमेर के ग्रंथ भण्डार तो ऐसी रचनाओं के लिए प्रसिद्ध ही है। वहाँ वि.सं. 924, 1139, 1109, 1115 एवं 1160 वि. की रचनाएँ स्याही से लिखी हुई सुरक्षित हैं। इसी प्रकार गुजरात के खंभात और पूना के संग्रहालयों में भी वि. 1164, 1181 एवं 962 की प्रतियाँ ताड़पत्र पर लिखि हुई पाई जाती हैं। 1. अक्षर अमर रहे : गैरोला वाचस्पति, पृ. 4 2. पाण्डुलिपिविज्ञान, डॉ. सत्येन्द्र, पृ. 146। 96 सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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