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ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण प्रशस्तियों के उल्लेख भी मिलते हैं । ताम्रपत्रांकित यन्त्र प्राचीन देवालयों एवं मंदिरों में आज भी देखे जा सकते हैं। अन्य ताम्र-वस्तुओं में चमचे (तक्षशिला की खुदाई में प्राप्त), दीपक (जमालगढ़ में प्राप्त), कढ़ाही आदि कहे जा सकते हैं । दक्षिण भारत से अनेक ऐसी धातु-निर्मित घण्टियाँ प्राप्त हुई हैं, जिन पर 10वीं-11वीं सदी के लेख उत्कीर्ण हैं।" ____5. स्वर्णपत्रीय : स्वर्णपत्रीय उत्कीर्ण लेख मूलतः दो प्रकार के पाए जाते हैं -
(1) स्वर्णपत्र पर : स्वर्णपत्र पर एक ग्रंथ ढाका (बंगलादेश) के धामदह ताल से प्राप्त हुआ था, जो 24 स्वर्णपत्रों पर अंकित था। इसी प्रकार भारत से बाहर बौद्ध धारणी भी स्वर्णपत्रों पर अंकित मिली है। अनेक प्राचीन अभिमंत्रित मंत्र भी स्वर्णपत्रों पर अंकित मिलते हैं। इनके अतिरिक्त अनेक राजपत्र एवं व्यापारिक पत्र भी प्राप्त होते हैं।
(2) स्वर्णनिर्मित वस्तुओं के लेख : स्वर्णपत्र के अतिरिक्त स्वर्णनिर्मित अनेक वस्तुओं, जैसे - प्याले-कटोरे, सुराही, लटकन एवं देव-पालकियों पर भी लेख मिलते हैं। ब्रिटिश म्यूजियम में प्राप्त कुछ पाण्डुलिपियाँ यद्यपि लिखी तो ताड़पत्र पर गई हैं किन्तु उन्हें स्वर्ण मंडित किया गया है।
6. रजतपत्रीय : स्वर्णपत्र की तरह रजतपत्र पर भी अनेक प्रकार के अभिलेख मिले हैं। इनमें तक्षशिला की खुदाई में प्राप्त सामग्री विशेष ध्यान देने योग्य है। यहाँ अभिलेख, प्याले-कटोरे, तश्तरियाँ, रकाबी, चलनी आदि प्राप्त हुए हैं । ब्रिटिश म्युजियम में रजत मंडित ताड़पत्रों पर खचित अनेक ग्रंथ उपलब्ध हैं । सन् 79 ई. का एक रजत अभिलेख जो तक्षशिला से कुण्डली आकार में प्राप्त हुआ है, भी उल्लेखनीय है।
7. अन्य धातुओं पर : इनके अतिरिक्त कांस्य, लौह, पीतल एवं पंचधातु या अष्टधातु निर्मित अनेक सामग्रियाँ प्राप्त होती हैं, जिन पर लेख उत्कीर्ण हैं; जैसे - कांस्य पीठिका (मूर्ति), कांस्य पिटक, फलक, कांस्य मुद्राएँ, लौह स्तम्भ (दिल्ली), लौह त्रिशूल (आबू) एवं पीतल की घंटियाँ आदि जो मंदिरों में प्राप्त होती हैं।
1.
The Researcher, Vol. VII-IX. 1966-68, Jaipur, pp. 47-50.
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पाण्डुलिपि : प्रकार
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