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तालाब की पुश्तों पर राजकवि रणछोड़ कृत 'राज प्रशस्ति' 24 खण्डों में, 24 शिलापट्टों पर उकेर कर जड़ी गई हैं। ऐसे ही भोज परमार का कूर्मशतक' (प्राकृतभाषा काव्य), मदन की 'पारिजात मंजरी' (संस्कृत नाटक), अजमेर के शासक विग्रहराज चतुर्थ (1153-54 ई.) का हरकेलि नाटक तथा उनके राजकवि सोम शेखर का 'ललितविग्रह नाटक' शिलापट्टीय लेख ही हैं।
(ग) स्तम्भीय : प्रस्तर स्तम्भों पर लेख खुदवाने की परम्परा भी अतिप्राचीन है। ये स्तम्भ लेख कई प्रकार के हो सकते हैं, जैसे -
(1) शिलास्तम्भ : सम्राट अशोक (272-232 ई. पू.) कालीन शिलास्तम्भ लेख सम्भवतः प्राचीनतम शिलालेख स्तम्भ हैं । इन पर उत्कीर्ण लिपि में इन्हें शिलास्तम्भ ही कहा गया है।
(2) ध्वजस्तम्भ : प्रस्तरांकित ये लेख प्रायः मंदिरों के सामने स्थापित किये जाते हैं; जैसे - होलियो-डोरस का गरुड़ध्वज, दिल्ली के पास महरोली के प्रसिद्ध विष्णुध्वज के अभिलेख भी इसी कोटि के हैं।
(3) जयस्तम्भ : किसी युद्ध में विजय प्राप्त करने पर विजेता राजा की प्रशस्ति प्रस्तरांकित कर स्थापित की जाती थी, जैसे – सम्राट समुद्रगुप्त का एरण का और यशोवर्मन का मन्दसौर (म.प्र.) के जयस्तम्भ हैं।
(4) कीर्तिस्तम्भ : किसी व्यक्ति के धार्मिक, सामाजिक पुण्यकार्यों की कीर्ति को उजागर करने के लिए खड़ा किया जाता है।
(5) वीर-पुरुष स्तम्भ : युद्ध में अपार शौर्यपूर्ण कार्य करते हुए वीरगति को प्राप्त किसी सामान्य व्यक्ति की स्मृति में ऐसे स्तम्भ खड़े किये जाते हैं । इन पर देव प्रतिमाओं के साथ लेख भी उत्कीर्ण होता है। ऐसे ही एक वीर-पुरुष स्मारक स्तम्भ को गाँव अमाई (कोटपूतली) से उद्धार कर राजकीय महाविद्यालय, कोटपूतली के प्रांगण में हमने स्थापित करवाया था। गुजराती में ऐसे वीर-पुरुष स्तम्भों को ‘पालियाँ' कहते हैं।
(6) सतीस्तम्भ : प्राचीनकाल में अपने पति के मृतक शरीर के साथ सती होने वाली नारियों की स्मृति में सतीस्तम्भ स्मारक-रूप में स्थापित किये जाते थे। इन पर भी लेख होते हैं। 1. ना. प्र. पत्रिका, अंक 3-4, वर्ष 71, संवत् 2023, पृ. 401-408 ।
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सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान
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