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. (7) धर्मस्तम्भ : ऐसे स्तम्भ प्राय: धर्म स्थलों पर स्थापित किये जाते थे। विशेष रूप से बौद्ध एवं जैनधर्म-स्थलों पर ऐसे सलेख स्तम्भ मिलते हैं । महाकूट का धर्मस्तम्भ ऐसा ही प्राचीन लेखयुक्त धर्मस्तम्भ है।
(8) स्मृतिस्तम्भ : किसी पारिवारिक या स्वगोत्री व्यक्ति की स्मृति में उत्कीर्ण कर खड़े किये जाते हैं। इन्हें गोत्र-शालिका भी कहते हैं।
(9) छाया स्तम्भ : यह भी स्मृति स्तम्भ का ही एक प्रकार है; किन्तु इस पर स्मृत-व्यक्ति की आकृति उकेरी जाती है।
(10) यूप-स्तम्भ : प्रायः यज्ञभूमि में यज्ञोपरान्त बलि-पशु को बाँधने के लिए सलेख स्तम्भ स्थापित किये जाते थे, जिन्हें यूप-स्तम्भ कहा जाता था।
2. मृण्मय - पकाई हुई मिट्टी पर भी कई प्रकार के लेख मिलते हैं; जो इस प्रकार हैं -
(क) मिट्टी की ईंटों पर : कच्ची-पक्की - दोनों प्रकार की ईंटों पर भी प्राचीन लेख प्राप्त हुए हैं। इन ईंटों पर ग्रंथ भी लिखे मिले हैं और अभिलेख भी। भारत में कुछ बौद्ध-धर्म ग्रंथ ईंटों पर उकेरे या उभारे गए मिले हैं। दाममित्र
और शीलवर्मन जैसे राजाओं के अश्वमेध संबंधी अभिलेख ईंटों पर लिखे मिलते हैं । एक ऐसा ही 'इस्टक खंड' डॉ. जगदीश गुप्त को अंगई खेड़े (म.प्र.) की एक पुरानी नींव से प्राप्त हुआ था। वे कहते हैं - "एक वृहदाकार इस्टक खंड पर पर्याप्त प्राचीन अवस्था के ब्राह्मी अक्षरों में ततिजसो इटाकु' अंकित मिलता है, जो ई.पू. प्रथम शती लगभग का अनुमानित किया गया है।"
इसी प्रकार के बौद्ध काल के धार्मिक सूत्र आदि ईंटों पर खुदे हुए मिले हैं, जिनके नमूने मथुरा संग्रहालय में देखे जा सकते हैं।
(ख) घोंघे : कभी-कभी ईंटों के अतिरिक्त मिट्टी के ढेलों पर भी लेख अंकित कर उन्हें आग में पका लिया जाता था। प्रायः ऐसे घोंघे धार्मिक मनौतियों की स्मृति में सलेख पकाये जाते थे। 1. धीरेन्द्र वर्मा विशेषांक, हिन्दी अनुशीलन, भारतीय हिन्दी परिषद्, प्रयाग, वर्ष 13,
अंक 1-2 (जन.-जून) 1960 ई. डॉ. जगदीश गुप्त का लेख 'मध्यप्रदेश का अज्ञात सांस्कृतिक केन्द्र अंगईखेड़ा', पृ. 242-246 ।
पाण्डुलिपि : प्रकार
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