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10. तुलनात्मक अध्ययन
यद्यपि प्राप्त पाण्डुलिपियों का तुलनात्मक अध्ययन पाठालोचन एवं भाषाविज्ञान के विद्वानों का विषय है, फिर भी एक क्षेत्रीय अनुसंधानकर्ता को भी इसकी संक्षिप्त जानकारी होना अपेक्षित है। इस संदर्भ में डॉ. सत्येन्द्र कहते हैं, "हमें क्षेत्रीय कार्य करते हुए और विवरण तैयार करते हुए कुछ कवि प्राप्त हुए। अब हमें यह भी जानना आवश्यक है कि क्या एक ही नाम के कई कवि हैं? उनकी पारस्परिक भिन्नता, अभिन्नता और उनके कृतित्व की स्थल तुलना करके अपनी उपलब्धि का महत्त्व समझा या समझाया जा सकता है । इसे एक उदाहरण से स्पष्ट करना होगा। चंदकवि' नाम के कवि के आपको कुछ ग्रंथ मिले। आपने अब तक प्रकाशित या उपलब्ध सामग्री के आधार पर उनका विवरण एकत्र किया। तब तुलनापूर्वक कुछ निष्कर्ष निकाला।" 11. जाली या नकली हस्तलिखित ग्रंथ
अब एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि क्षेत्रीय अनुसंधानकर्ता को खोज करते. समय जाली या नकली ग्रंथों के प्रति सावधानी रखनी होगी। आज के भौतिकतावादी युग में इन जाली ग्रंथों की संभावना अधिक हो गई है। प्रायः प्राचीन ग्रंथों की तस्करी अपने देश में और विदेशों में बढ़ गई है। चूंकि प्राचीन पाण्डुलिपियों के व्यवसाय में अच्छाखासा मुनाफा है, इसलिए असली की नकल बाजार में धड़ल्ले से चलती है । कभी-कभी तो कुशल एवं जानकार व्यक्ति भी इस जालसाजी के शिकार हो जाया करते हैं । यह तो सभी जानते हैं कि प्रो. व्हूलर ने 'पृथ्वीराज रासो' के एशियाटिक सोसायटी के द्वारा किये जा रहे प्रकाशन को 'जाली और भट्ट भणन्त' कह कर प्रकाशन से रुकवा दिया था। इसी प्रकार महत्वपूर्ण एवं प्राचीन रचनाकारों के ग्रंथों की नकली प्रतियाँ तैयार कर, बेचने का व्यवसाय चल रहा है इससे सावधान रहना चाहिए।
अतः पाण्डुलिपिविज्ञान के विद्यार्थी को हस्तलिखित ग्रंथ की बाह्य एवं आन्तरिक परीक्षा भलि-प्रकार करके उसके असली होने पर आश्वस्त होना चाहिए। उसे यह ध्यानपूर्वक देखना होगा कि कहीं रचना नकली या जाली तो नहीं है।
1. विशेष अध्ययन के लिए देखिए - पाण्डुलिपिविज्ञान : डॉ. सत्येन्द्र, पृ. 96-124।
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पाण्डुलिपि-प्राप्ति के प्रयत्न और क्षेत्रीय अनुसंधान
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