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12. रचनाकार के आश्रयदाता का परिचय 13. लिपिकार के आश्रयदाता का परिचय 14. रचना का उद्देश्य - स्वपठनार्थ या अन्यार्थ 15. प्रतिलिपि का उद्देश्य -- स्वपठनार्थ या अन्यार्थ 16. ग्रंथ की सुरक्षा (रख-रखाव) - बुंगचा, बस्ता, वेष्टन, पट्टे, डोरी आदि 17. ग्रंथ का विषय - प्रत्येक अध्याय का संक्षिप्त विषय-परिचय 18. आदि का उदाहरण 19. मध्य का उदाहरण 20. अन्त का उदाहरण 21. ग्रंथ में प्रयुक्त सभी पुष्पिकाएँ आदि। 9. लेखा-जोखा (प्राप्त ह. लि. ग्रंथों का हिसाब-किताब) ___यद्यपि पाण्डुलिपि की खोज में व्यस्त क्षेत्रीय अनुसंधानकर्ता को प्राप्त रचनाओं का लेखा-जोखा रखना आवश्यक नहीं है, फिर भी किसी संस्था या व्यक्ति विशेष के लिए कार्य करने वाले अनुसंधानकर्ता के लिए सहायक सिद्ध हो सकते हैं । लेखे-जोखे की कोई निश्चित कालावधि (3 माह, 6 माह, 9 माह, एक वर्ष आदि) में प्राप्त ग्रंथों के संदर्भ में निम्नलिखित जानकारी लिखी जानी चाहिए - (1) क्षेत्र-कार्य में आनेवाली प्रारंभिक कठिनाइयाँ एवं उनका समाधान (2) क्षेत्र-विशेष का भौगोलिक परिचय (3) भौगोलिक क्षेत्र के विविध स्थानों से प्राप्त सामग्री की अलग-अलग
संख्या (4) कुल प्राप्त ग्रंथ जिनका विवरण इस कालावधि में अंकित किया गया। इस प्रकार प्राप्त सम्पूर्ण सामग्री की कई तालिकाएँ बन सकती हैं - (1) ग्रंथ नामानुक्रमणिका की दृष्टि से (2) रचनाकार - नामानुक्रमणिका की दृष्टि से (3) काल विभाजन की दृष्टि से - भक्तिकाल की, रीतिकाल की आदि (4) शताब्दी क्रम की दृष्टि से - 10वीं शती में प्राप्त ग्रंथों की संख्या,
12वीं शती में प्राप्त ग्रंथों की संख्या आदि (5) अज्ञात रचनाकार या लिपिकारों की रचनाएँ - संख्या। .
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सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान
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