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________________ आवश्यक है। फिर प्रत्येक पृष्ठ में कितनी पंक्तियाँ हैं? और पूरे ग्रंथ में कितने पत्र हैं? टेसीटरी महोदय प्राय: अपनी खोज रिपोर्ट में कुल पन्नों की संख्या देते थे। साथ ही यह भी देख लेना चाहिए कि समस्त पन्नों की लिखावट एक ही लिपिकर्ता की है या भिन्न लिपिकर्ता की। लिखावट साफ है या अस्पष्ट है या स्याही फूटी हुई है, यह भी देखना चाहिए। हस्तलिखित ग्रंथ में 'अलंकरण या चित्र-सज्जा' का भी विशेष महत्व है। चित्रों या अलंकरण से सज्जित रचना की कीमत बढ़ जाती है । वह मूल्यवान मानी जाती है। अनुसंधानकर्ता को चित्रों की विषयानुकूलता और उनकी संख्या का उल्लेख भी करना अपेक्षित है। कलात्मकता की दृष्टि से चित्रों का मूल्यांकन भी करने का प्रयास करना चाहिए। चित्रों में प्रयुक्त विविध रंगों का उल्लेख भी करना ठीक रहेगा। ग्रंथ में प्रयुक्त 'स्याही' का विवरण भी देना चाहिए। स्याही के कच्ची-पक्की होने की स्थिति भी दर्शानी चाहिए। प्रायः लाल स्याही में णमोकार, हाशिए एवं पुष्पिका लिखने का प्रचलन रहा है। इससे इतर भी यदि कोई स्याही प्रयुक्त हुई है तो उसका भी उल्लेख होना चाहिए। यहाँ तक पाण्डुलिपि के रूप का बाह्य विवरण दिया गया है। 7. ग्रंथ का आन्तरिक परिचय पाण्डुलिपि के बाह्य विवरण के बाद क्षेत्रीय अनुसंधानकर्ता को अपनी खोज रिपोर्ट में ग्रंथ का संक्षिप्त अन्तरंग परिचय भी देना चाहिए, जिसमें सामान्यतः निम्न बिन्दुओं को रेखांकित करना अपेक्षित है - (1) रचनाकार का नाम - रचनाकार के नाम के साथ अन्य बातें, यथा - निवास-स्थान, वंश-परिचय आदि देना चाहिए। (2) रचनाकाल - यदि रचनाकाल रचना में दिया गया है तो वही लिखना चाहिए अन्यथा अज्ञात लिखना चाहिए। हाँ, पारिस्थितिक प्रमाणों के आधार पर अनुमानित रचनाकाल का संकेत भी दिया जा सकता है। (3) ग्रंथ-रचना का उद्देश्य (4) रचना का स्थान (5) आश्रयदाता का नाम-परिचय (6) रचना की भाषा - संस्कृत, गुजराती, राजस्थानी आदि एवं उसकी विशेषता 84 सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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