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________________ 1. भाषा योग वाशिष्ठ : भाषा संस्कृत। कृति पूर्ण। कुल प्रकरण 10 हैं। लिपिकाल सं. 39 तथा लिपिकर्ता श्री शिवराम ने महादेवगिरि पर कश्मीर में स्वपठनार्थ इस कृति का लिप्यंकन किया था। रचना की पुष्पिका में लिखा है - "इति श्री सर्व विद्यानिधान कवीन्द्राचार्य सरस्वती विरचितं भाषा योग वाशिष्ठ सारे ज्ञान सारापरनाम्नि तत्व निरूपणं नाम दशमं प्रकरण ॥ 10 ॥ समाप्तोयं ग्रंथः ॥ संवत् ।। 39 ॥ कश्मीर मध्ये। शिवराम लिखितं महादेव गिरी पठनार्थे । शुभं भवतुं ॥ निरंजनी॥" अकबर के शासनकाल में स्यालकोट में 'मानसिंही' कागज बनाया जाता था। राजस्थान में भी प्राचीन काल से ही कागज बनाने के अनेक कारखाने कार्यरत थे। डॉ. सत्येन्द्र जी कहते हैं - "राजस्थान में भी मुगलकाल में जगह-जगह कागज और स्याही बनाने के कारखाने थे। जयपुर, जोधपुर, भीलवाड़ा, गोगुंदा, बूंदी, बांदीकुई, टोडाभीम और सवाईमाधोपुर आदि स्थानों पर अनेक परिवार इसी व्यवसाय से कुटुम्ब पालन करते थे। जयपुर और आसपास के 55 कारखाने कागज बनाने के थे, इनमें सांगानेर सबसे अधिक प्रसिद्ध था और यहाँ बना हुआ कागज ही सरकारी दफ्तरों में प्रयोग में लाया जाता था। 200 से 300 वर्ष पुराना सांगानेरी कागज और उस पर लिखित स्याही के अक्षर कई बार ऐसे देखने में आते हैं मानों आज ही लिखे गये हों।" सांगानेरी मोटे कागज को 'पाठा' कहते हैं, जो संभवतः 'पत्र' का ही रूपान्तर है। यह 'स्याही-पाठा' प्राचीनकाल से ही सेठ या पटवारी की लिखापढ़ी का माध्यम रहा है । अत: एक क्षेत्रीय पाण्डुलिपि अनुसंधान करने वाले को कागज के संबंध में कुछ जानकारियाँ रखनी चाहिए, जैसे - कागज का रंग कैसा है? क्या कागज कुरकुरा हो गया है? क्या दीमक, कीड़े-मकोड़ों ने खा रखा है? क्या पूरी पोथी का एक ही प्रकार का कागज है या भिन्न प्रकार का? आदि कागज विषयक समस्त विशेषताओं की जानकारी होनी चाहिए। इसके बाद 'पन्नों की लम्बाई-चौड़ाई' का माप लेना चाहिए। यह माप 'लम्बाई x चौड़ाई' इंच के रूप में दी जाती है, किन्तु आजकल सेण्टीमीटर में भी दी जाने लगी है। अनुसंधानकर्ता को 'पाण्डुलिपि के रूप विधान' का भी ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए सर्वप्रथम पाण्डुलिपि की लिपि को जान लेना 1. पाण्डुलिपिविज्ञान, पृ. 84 पाण्डुलिपि-प्राप्ति के प्रयत्न और क्षेत्रीय अनुसंधान 83 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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