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________________ माणससरसारिक्खं पुहवं' भमंतो न पाविहिसि 22. सव्वायरेण रक्खह तं पुरिसं जत्थ जयसिरी वसई अत्थमिय' चंदबिंबे ताराहि न क जोहा 23. जइ चंदो किं 1. 2. 86 [ ( माणससर) - (सारिक्ख) 1 / 1 वि] (पुहवि) 2/1 (भम) वकृ 1 / 1 अव्यय (पाव) भवि 2/1 सक Jain Education International [(सव्व)+(आयरेण)] [(सव्व) वि- (आयरेण) क्रिविअ = आदरपूर्वक ] ( रक्ख) विधि 2 / 2 सक (त) 2 / 1 सवि (पुरिस) 2/1 अव्यय ( जयसिरि) 1/1 (वस) व 3 / 1 अक (अत्थम) भूक 7/1 [(चंद) - (बिंब) 7/1] (तारा) 3/2 अव्यय (कीरए) व कर्म 3 / 1 सक अनि ( जोहा ) 1 / 1 अव्यय (चंद) 1/1 (किं) 1/1 सवि प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2 = मानसरोवर के समान = For Personal & Private Use Only = = पृथ्वी पर = भ्रमण करते हुए = नहीं = = पाओगे = = रक्षा करो = उस पूर्ण आदर से पुरुष की = जहाँ = = - जयलक्ष्मी = रहती है = अस्त होने पर = चन्द्र बिम्ब के = तारों द्वारा = नहीं किया जाता है 'गति' अर्थ के साथ द्वितीया विभक्ति का प्रयोग होता है। मूल शब्द (किसी भी कारक के लिए मूल शब्द काम में लाया जा सकता है : वज्जालगं पृष्ठ 459 गाथा 264 ) । = प्रकाश = यदि = चन्द्रमा = क्या www.jainelibrary.org
SR No.002692
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages192
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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