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________________ = दुगना बिउणो समुच्छाहो (बिउण) 1/1 वि [(सम)+ (उच्छाहो)] [(सम) वि-(उच्छाह)1/1] = अचल उत्साह 3. फलसंपत्तीइ समोणयाई तुंगाई फलविपत्तीए हिययाई सुपुरिसाणं महातरूणं व सिहराई [(फल)-(संपत्ति) 7/1] (समोणय) 1/2 वि (तुंग) 1/2 वि [(फल)-(विपत्ति) 7/1] (हियय) 1/2 (सुपुरिस) 6/2 [(महा)-(तरु) 6/2] अव्यय (सिहर) 1/2 = फलों की प्राप्ति होने पर = बहुत झुके हुए = ऊँचे = फलों के नाश होने पर = हृदय . .. = सज्जन पुरुषों के = महावृक्षों के = की तरह = शिखरों . A. हियए = मन में जाओ (हियअ) 7/1 (जा') भूकृ 1/1 (तत्थ+एव) अव्यय (वड्ढ) भूकृ 1/1 तत्थेव वढिओ नेय अव्यय पयडिओ = उत्पन्न हुआ है = वहाँ, ही = बढ़ाया गया = कभी नहीं = प्रकट किया गया = लोक में = संकल्परूपी वृक्ष = सज्जन पुरुषों का = पहचाना जाता है = फलों द्वारा लोए (पयड) भूकृ 1/1 (लोअ) 7/1 [(ववसाय)-(पायव) 1/1] (सुपुरिस) 6/2 (लक्ख) व कर्म 3/1 सक (फल) 3/2 ववसायपायवो सुपुरिसाण लक्खिज्जइ फलेहिं 1. अकर्मक धातुओं से बने भूतकालिक कृदन्त कर्तृवाच्य में भी प्रयुक्त होते हैं। 76 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग -2 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002692
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages192
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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