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पाठ - 1 वज्जालग्ग
-
.
उस
का
किं पि साहसं साहसेण साहति
(त) 2/1 सवि
अव्यय (साहस) 2/1 (साहस) 3/1 (साह) व 3/2 सक [(साहस)-(सहाव) 1/2] (ज) 2/1 स (भाव) संकृ (दिव्व) 1/1 (परंमुह) 1/1 (धुण) व 3/1 सक [(निय) वि-(सीस) 2/1]
= कुछ भी = साहस (कार्य) को = साहस से = सिद्ध करते हैं = साहस, स्वभाव = जिस (कार्य) को = विचारकर
साहससहावा.
= दैव
भाविऊण दिव्वो परंमुहो धुणइ नियसीसं .
= उदासीन = हिलाता है = निज शीश को
३
अव्यय
= जैसे = जैसे
अव्यय
समप्पड़
विहिवसेण विहडतक्रज्जपरिणामो तहे
अव्यय (समप्पइ) व कर्म 3/1 सक अनि [(विहि)-(वस) 3/1] [(विहड) वकृ-(कज्ज)(परिणाम) 1/1] अव्यय अव्यय (धीर) 6/2 वि (मण) 7/1 (वड्ढ) व 3/1 अक
= पूरा किया जाता है = विधि की अधीनता से = बिगड़ता हुआ होने के
कारण, कार्य का परिणाम = वैसे
= वैसे
धीराण
मणे
= धीरों के = मन में = बढ़ता है
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग -2
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