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पाठ - 8
मधुबिंदु - दृष्टान्त ... कोई पुरुष अनेक देशों में विचरण करनेवाले व्यापारियों के समूह के साथ जंगल में पहुंचा और व्यापारियों का समूह चोरों के द्वारा आघात को प्राप्त हुआ। वह पुरुष व्यापारियों के समूह से निकला (और) दिग्भ्रमित सा भटकता हुआ आँधी-तूफान वाले दिन भयानक मुखवाले जंगली हाथी के द्वारा पराजित हुआ। भागते हुए उसके द्वारा तिनके व घास से ढका हुआ पुराना कुआ देखा गया। उसके किनारे पर बड़ा बड़ का पेड़ था। उसकी शाखा कुएँ में प्रवेश कर रही थी।
भय से युक्त, वह पुरुष शाखा पर लटककर कुएँ के मध्य में स्थित हुआ और देखता है, वहाँ विशालकायवाला अजगर मुँह फाड़े हुए खाने की इच्छा से उस पुरुष को देखता है। फिर तिरछा होकर देखता है। चारों दिशाओं में भीषण सर्प डसने की इच्छा से बैठे हैं। शाखा के ऊपर काले व सफेद दो चूहे उस शाखा को छेद रहे हैं। हाथी सूण्ड से उस शाखा को हिलाता है। उस पेड़ पर बहुत अधिक मात्रा में शहद था। हाथी द्वारा हिलाए जाने पर पेड़ पर हवा से हिलती हुई शहद की बूंद उस पुरुष के मुँह में आती है और वह स्वाद लेता है। भौरे खाने की इच्छा से उस पर चारों तरफ सीधे गिरते हैं।
उसका इस प्रकार जाना क्या सुखकारी है? जो (व्यक्ति) मधु के बूंद की अभिलाषा करता है, उसका क्षणिक (तृप्ति रूपी) सुख भी शेष दु:खमय हो जाता है। इस प्रकार (इस) दृष्टान्त का उपसंहार (यह) है
.. जिस प्रकार वह पुरुष है उसी प्रकार संसारी जीव है। जैसे वह जंगल है उसी तरह जन्म, बुढ़ापा, रोग, मृत्यु से व्याप्त संसाररूपी जंगल है। जिस प्रकार जंगल का हाथी है उसी प्रकार मृत्यु है। जिस प्रकार कुआ (है) उसी प्रकार देवभव और मनुष्यभव है। जिस प्रकार अजगर है उसी प्रकार नरक तिर्यंचगति है। जिस प्रकार सर्प है उसी प्रकार क्रोध, मान, माया, लोभ चार कषाय दुर्गति की ओर ले जाने वाले नायक हैं। जिस तरह शाखा है उसी तरह जीवनकाल है। जिस प्रकार चूहे हैं उसी प्रकार कृष्ण व शुक्ल पक्ष रात-दिन दाँतों से जीवन को नष्ट कर रहे हैं। जैसे पेड़ है, वैसे कर्मबन्धन हेतु अज्ञान, अविरति व मिथ्यात्व है। जैसे शहद है वैसे शब्द, रूप, स्पर्श, रस, गन्ध इन्द्रियों से जानने योग्य वस्तुएँ हैं, जिस प्रकार भौरे हैं, उसी प्रकार आनेवाली शरीर से उत्पन्न व्याधि है। . .. उस शरीर को भी भय व दुःख में कहाँ सुख है? शहद की बूंद का स्वाद लेनेवाली सिर्फ सुख की कल्पना है।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
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