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जयाय चयई धम्मं अणज्जो भोगकारणा । से तत्थ मुच्छिए बाले आयइं नावबुज्झई ||
जत्थेव पासे कइ दुप्पउत्तं
काएण वाया अदु माणसेणं । तत्थेव धीरो पडिसाहरेज्जा
आइण्णो खिप्पमिव क्खलीणं ॥
सुसमाहिएहिं ।
अप्पा खलु सययं रक्खियव्वो सव्विदिएहिं अरक्खिओ जाइपहं उवेई सुरक्खिओ सव्वदुहाण मुच्चइ ॥
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
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