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जब अज्ञानी (व्यक्ति) भोग के प्रयोजन से धर्म (अध्यात्मिक मूल्यों) को सर्वथा छोड़ देता है, (तो) (यह कहना ठीक है कि) वह अज्ञानी उस (भोग) में मूर्च्छित (है)। (इस तरह से) (वह) (अपने) भविष्य को नहीं समझता है।
जहाँ कहीं धीर (व्यक्ति) मन से, वचन से या काया से खराब (कार्य) किया हुआ (अपने में) देखे, वहाँ ही (वह) (अपने को) पीछे खींचे, जैसे कुलीन घोड़ा लगाम को (देखकर) (अपने को) तुरन्त (पीछे खींच लेता है)।
निस्सन्देह आत्मा पूरी तरह से उपशमित सभी इन्द्रियों द्वारा सदा सुरक्षित की जानी चाहिए। अरक्षित (आत्मा) जन्ममार्ग की ओर जाती है। सुरक्षित (आत्मा) सब दुःखों से छुटकारा पाती है।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
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