________________
8.
णिव्वाडंताण सिवं सअलं चिअ सिवअरं.तहा ताण । णिव्वडइ किं पिजह ते वि अप्पणा विम्हअमुवेंति॥
9.
तं खलु सिरीऍ रहस्सं जं सुचरिअ-मग्गणेक्क-हिअओ वि। अप्पाणमोसरंतं गुणेहिं लोओ ण लक्खेइ॥
10.
एक्के लहुअ-सहावा गुणेहि लहिउं महंति धण-रिद्धि। . अण्णे विसुद्ध-चरिआ विहवाहि गुणे विमग्गंति॥
11.
दूमिज्जंता हिअएण किं पि चिंतेंति जइ ण जाणामि। . किरियासु पुण पअटुंति सज्जणा णावरद्धे वि॥
12. महिमं दोसाण गुणा दोसा वि हु देति गुण-णिहाअस्स।
दोसाण जे गुणा ते गुणाण जइ ता णमो ताण॥
13.
संसेविऊण दोसे अप्पा तीरइ गुण-टिओ काउं। णिव्वडिअ-गुणाण पुणो दोसेसु मई ण संठाइ॥
14.
जह जह णग्घंति गुणा जह जह दोसा अ संपइ फलंति। अगुणाअरेण तह तह गुण-सुण्णं होहिइ जंअं पि॥
18
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org