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1.
पाठ - 2
गउडवहो इस लोक में वे कवि जीतते हैं (सफल होते हैं) जिनकी वाणियों (काव्यों) में सकल अभिव्यक्ति विद्यमान (है)। (और इसलिए) वह जगत या तो हर्ष से पूर्ण या तिरस्कार (योग्य) देखा जाता है।
2.
स्वकीय वाणी के द्वारा ही निज के गौरव को स्थापित करते हुए जो निश्चय ही प्रशंसा प्राप्त करते हैं, वे महाकवि इस लोक में जीतते हैं (सफल होते हैं)। .
3.
जिनके हृदय काव्य-तत्त्व के रसिक होते हैं, उन (व्यक्तियों) के लिए निर्धनता में भी (कई प्रकार के) सुख (होते हैं) (तथा) वैभव में भी (कई प्रकार के) दुःख होते हैं।
4.
लक्ष्मी की थोड़ी मात्रा भी उपभोग की जाती हुई शोभती है तथा सुखी करती है, किन्तु किंचित् भी.अपूर्ण देवी सरस्वती (अधूरी विद्या) उपहास करती है।
दुर्जनों द्वारा कही हुई, निन्दा सज्जनों को लगेगी अथवा नहीं (लगेगी) (कहा नहीं जा सकता), किन्तु वह (निन्दा) सज्जनों की निन्दा (से उत्पन्न) दोष के कारण उन (दुर्जनों) के (ही) घटित हो जाती है।
जिनके लिए असमान (व्यक्तियों) के द्वारा की गई प्रशंसा भी निन्दा के समान होती है, उनके मन को उन (असमान व्यक्तियों) के द्वारा की गई निन्दा भी खिन्न नहीं करती है।
दूसरे का छोटा गुण भी (महान व्यक्ति को) प्रसन्न करता है, (किन्तु) (उसे) अपने बड़े गुण में भी सन्तोष नहीं (होता है)। शील और विवेक का यह इतना ही सार है।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग-2
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