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रयणेहि निरंतरपूरिएहि रयणायरस्स न हु गव्वो। करिणो मुत्ताहलसंसए वि मयविन्भला दिट्ठी॥ ..
49.
रयणायरस्स न हु होइ तुच्छिमा निग्गएहि रयणेहिं। तह वि हु चंदसरिच्छा विरला रयणायरे रयणा॥
50.. जइ विहु कालवसेणं ससी समुद्दाउ कह वि विच्छुडिओ।
तह वि हु तस्स पयासो आणंदं कुणइ दूरे वि॥
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प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग -2
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