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39.
परलोक में भी गए हुए उन पुरुषों के (मन में) जिनके गुणों के उत्साह से वंश में उत्पन्न (व्यक्ति) जीते हैं, निश्चय ही पश्चाताप नहीं है।
40. सज्जनों के द्वारा प्रशंसा किए जाने योग्य मार्ग पर आत्मा जिनके द्वारा स्थापित
नहीं की गई (है) (तथा) सुसमर्थ (होते हुए) भी जो दूसरों का उपकार करने वाले नहीं है, उन (दोनों) के द्वारा कुछ भी (लाभ) नहीं है।
41. सूखे हुए तथा घिसे गए चन्दन के द्वारा भी निश्चय ही किसी न किसी प्रकार
गन्ध फैली हुई है, जिससे कि अस्तित्व में आई हुई (बनी हुई) सरस फूलों की माला भी सुगन्ध से लज्जित (होती है)।
42. विधि के द्वारा घड़े हुए उस जैसे चन्दन के वृक्ष का एक ही दोष है (कि) दुष्ट
सर्प क्षण के लिए भी जिसके (उसके) आस-पास को नहीं छोड़ते हैं।
43. बहुत बड़े वृक्षों के बीच में चन्दन की शाखा सर्प दोष के कारण काट दी जाती - है, जैसे अपराधरहित भद्र पुरुष दुष्टसंग के कारण (कष्ट दिया जाता है)।
44. समुद्र के द्वारा नहीं जाने हुए गुणों के कारण (समुद्र के द्वारा) रत्न यद्यपि
परित्याग किया गया है, तो भी पन्ने का टुकड़ा जहाँ भी गया वहाँ ही मूल्यवान - (सिद्ध हुआ है)।
45.
(किसी भी) मनुष्य के दोष को ही ग्रहण मत करो, (उसके) विरल गुणों की भी प्रशंसा करो। बहुत अधिक रुद्राक्ष (युक्त) समुद्र भी लोक में रत्नाकर कहा जाता है।
46.
लक्ष्मी के बिना (भी) रत्नाकर की गम्भीरता उसी तरह ही (बनी हुई है), (किन्तु) कहो, वह लक्ष्मी उसके (समुद्र के) बिना किसके घर नहीं पहुँची ?
47. . (यद्यपि) समुद्र वडवानल (भीतरी आग) के द्वारा ग्रसा हुआ (है), सकल .. सुर-असुरों द्वारा मथा गया (है) और लक्ष्मी के द्वारा त्यागा गया (है), (फिर
भी) उसकी गम्भीरता को देखो।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
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