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परलोयगयाणं पि हु पच्छत्ताओ न ताण पुरिसाणं। जाण गुणुच्छाहेणं जियंति वंसे समुप्पन्ना॥
सज्जणसलाहणिज्जे पयम्मि अप्पा न ठाविओ जेहिं। सुसमत्था जे न परोवयारिणो तेहि वि न किं पि॥
41.
सुसिएण निहसिएण वि तह कह वि हु चंदणेण महमहियं। सरसा वि कुसुममाला जह जाया परिमलविलक्खा।
42. एक्को चिय दोसो तारिसस्स चंदणदुमस्स विहिघडिओ।
.. जीसे दुट्ठभुयंगा खणं पि पासं न मेल्लंति॥
बहुतरुवराण मज्झे चंदणविडवो भुयंगदोसेण। छिज्झइ निरावराहो साहु व्व असाहुसंगेण॥
रयणायरेण रयणं परिमुक्कं जइ वि अमुणियगुणेण। तह वि हु मरगयखंडं जत्थ गयं तत्थ वि महग्छ।
मा दोसं चिय गेण्हह विरले वि गुणे पसंसह जणस्स। अक्खपउरो वि उवही भण्णइ रयणायरो लोए॥
लच्छीइ विणा रयणायरस्स गंभीरिमा तह च्चेव। सा लच्छी तेण विणा भण कस्स न मंदिरं पत्ता॥
47.
वडवाणलेण गहिओ महिओ य सुरासुरेहि सयलेहिं। लच्छीइ उवहि मुक्को पेच्छह गंभीरिमा तस्स ॥
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
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