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णाण
जगमसेसं
(णाण) 1/1 [(जग)+(असेस)] जगं (जग) 2/1 असेसं (असेस) 2/1 वि
= ज्ञान = विश्व को = समस्त
3.
विज्जा.
भत्तिवंतस्स सिद्धिमुवयादि
(विज्जा) 1/1
= विद्या. अव्यय
= भी (भत्तिवंत) 6/1
= भक्तिवान की [(सिद्धिं) + (उवयादि)] सिद्धिं (सिद्धि) 2/1 = सिद्धि को, उवयादि (उवया) व 3/1 सक
= प्राप्त होती है (हो) व 3/1 अक
= होती है (सफला) 1/1 वि
= सफल अव्यय
= और
होदि
सफला
किह
अव्यय
- कैसे
पुण
णिव्वुदिबीजं सिज्झहिदि अभत्तिमंतस्स
अव्यय [(णिव्वुदि)-(बीज) 1/1] · (सिज्झ) भ 3/1 अक (अभत्तिमंत) 4/1
= फिर = मोक्ष रूपी बीज = सिद्ध होगा = अभक्तिवान के लिए
णाणुज्जोएण' (णाण) + (उज्जोएण)]
[(णाण)-(उज्जोय) 3/1] विणा - अव्यय ।
(ज) 1/1 स ‘इच्छदि. (इच्छ) व 3/1 सक मोक्खमग्गमुवगन्तुं [(मोक्ख)+ (मग्गं) + (उवगन्तुं)]
[(मोक्ख)-(मग्ग) 2/1] (उवगन्तुं) हेकृ अनि (गन्तुं) हेकृ अनि .
= ज्ञान रूपी प्रकाश के = बिना = जो (व्यक्ति) = इच्छा करता है
= मोक्ष-मार्ग को = जाने के लिए = जाने के लिए
1.
बिना के योग में तृतीया विभक्ति का प्रयोग होता है।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
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