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. पाठ - 6 भगवती अराधना
दुज्जणसंसग्गीए पजहदि णियगं
[(दुज्जण) वि-(संसग्ग-संसग्गी) 3/1] (पजह) व 3/1 सक (णियग) 2/1 वि
= दुर्जन के संसर्ग से . = त्याग देता है = अपने.. = गुण को = निश्चित रूप से, .
गुण
.
(गुण) 2/1
अव्यय
सुजणो
(सुजण) 1/1
= सज्जन
अव्यय
= भी
शीतल स्वभाव को
[(सीयल) वि- (भाव) 2/1] (उदय) 1/1
सीयलभावं उदयं जह पजहदि अग्गिजोएण
= पानी = जैसे
अव्यय
(पजह) व 3/1 सक - [(अग्गि)-(जोअ) 3/1]
= त्याग देता है = अग्नि के योग से
2.
णाणुज्जोवो
= ज्ञान रूपी प्रकाश = प्रकाश (है)
जोवो णाणुज्जोवस्स
= ज्ञान रूपी प्रकाश का = नहीं
णत्थि
[(णाण)+(उज्जोवो)] [(णाण)-(उज्जोव) 1/1] (जोव) 1/1 [(णाण)+(उज्जोवस्स)] . [(णाण)-(उज्जोव) 6/1] [(ण)+(अत्थि)] ण (अव्यय)
अत्थि (अस) व 3/1 अक (पडिघाद) 1/1 (दीव) व 3/1 सक [(खेत्तं)+ (अप्पं)] खेत्तं (खेत्त) 2/1 अप्पं (अप्प) 2/1 वि (सूर) 1/1 .
P4
पडिघादो दीवेइ खेत्तमप्पं
= विनाश = प्रकाशित करता है = क्षेत्र को = अल्प = सूर्य
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प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
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