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कुव्वित्था
27.
सयमेव
अभिसमागम्म
आयतजोगमाय
सोही
अभिव्वुिडे
अमाइल्ले
आवकह
भगवं
समितासी
1.
2.
(कुव्व) भू 3 / 1 सक
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[(सयं) + (एव)]
सयं (अव्यय)
एव (अव्यय)
(अभिसमागम्म) संकृ अनि
[(आयत) + (जोगं) + (आय) +
(सोहीए)]
[(आयत) वि - (जोग) 2 / 1]
[(आय) - (सोहि ) 3/1] (अभिणिव्वुड) 1/1 वि
(अमाइल्ल) 1 / 1 वि
अव्यय
( भगवं) 1 / 1
[(समित) + (आसी)]
मित' (समित) मूल शब्द 1 / 1
आसी' (अस) भू 3 / 1 अक
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
= स्वयं
ही
= प्राप्त करके
=
किया
: संयत, प्रवृत्ति को,
= आत्म-शुद्धि के द्वारा
= शान्त
= सरल
=
: जीवनपर्यन्त
= भगवान
किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है। (पिशल: प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ, 517 ) मेरे विचार से यह नियम विशेषण पर भी लागू किया जा सकता है।
आसी अथवा आसि सभी पुरुषों और वचनों में भूतकाल में काम आता है। (देखें गाथा
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= समतायुक्त
= रहे
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