________________
घासमेसे
-
कडं
= आहार को, भिक्षा ग्रहण
करता है- करते थे । = बने हुए .. = दूसरे के लिए
परट्ठाए
सुविसुद्धमेसिया
[(घास) + (एसे)] घासं (घास) 2/1 एसे (एस) व 3/1 सक (कड) भूक 2/-1 अनि (परट्ठ) 4/1 [(सुविसुद्ध)+ (एसिया)] सुविसुद्धं (सुविसुद्ध) 2/1 वि एसिया' (एस) संकृ (भगवं) 1/1 [(आयत) वि-(जोगता) 3/1] (सेव) भू 3/1 सक
= सुविशुद्ध,
भिक्षा ग्रहण करके = भगवान = संयत, योगत्व से = उपयोग में लाते थे
भगवं आयतजोगताए सेवित्था 26. अकसायी विगतगेही
सद्दरूवेसुऽमुच्छिते
(अकसायि) 1/1 वि [(विगत) भूकृ अनि-(गेहि) 1/1] अव्यय [(सद्द) + (रूवेसु)+ (अमुच्छिते)] [(सद्द)-(रूव) 7/2] अमुच्छिते (अमुच्छित) 1/1 वि (झा) व 3/1 सक
झाती'
= कषाय-रहित = लोलुपता नष्ट कर दी गई
= और . = शब्दों, रूपों में
अनासक्त = ध्यान करते हैं
ध्यान करते थे = असर्वज्ञ = भी = साहस के साथ करते हुए = नहीं = प्रमाद (को) = एकबार = भी
छउमत्थे
वि
(छउमत्थ) 1/1 वि अव्यय (विप्परक्कम) वकृ 1/1
विप्परक्कममाणे
ण
अव्यय
पमायं
(पमाय)2/1
अव्यय
अव्यय
1. 2.
पिशल: प्राकृत भाषाओं का व्याकरण : पृष्ठ, 834 छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'ति' को 'ती' किया गया है।
146
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org