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राओवरातं
= रात में, दिन को..
दिन में = राग-द्वेष-रहित
अपडिण्णे अण्णगिला
[(राअ) + (उवरात)] [(राअ)-(उवरात) 2/1] (अपडिण्ण) 1/1 वि [(अण्ण) + (गिलायं)+ (एगता)] [(अण्ण)-(गिलाय) 2/1] एगता (अव्यय) (भुंज) व 3/1 सक
यमेगता
= भोजन, बासी को = कभी-कभी = खाता है-खाया
23.
छट्टैण'
(छट्ठ) 3/1
एगया
अव्यय
= दो दिन के उपवास के
बाद में = कभी = भोजन करते हैं, .. भोजन करते थे
भुंजे
(भुंज) व 3/1 सक
= अथवा
अदुवा अट्ठमेण
अव्यय (अट्ठम) 3/1
दसमेण
(दसम) 3/1
दुवालसमेण'
(दुवालसम) 3/1
एगदा
अव्यय (भुंज) व 3/1 सक
= तीन दिन के उपवास के
ब्राद में = चार दिन के उपवास के
बाद में = पाँच दिन के उपवास के
बाद में = कभी = भोजन करते हैं
भोजन करते थे = देखते हुए = समाधि को = निष्काम
पेहमाणे
समाहिं
(पेह) वकृ 1/1 (समाहि) 2/1 (अपडिण्ण) 1/1 वि
अपडिण्णे
॥
कभी-कभी पंचमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-136) यहाँ 'बाद में' अर्थ लुप्त है, तथा 'बाद में' अर्थ के योग में पंचमी होती है।
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प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग -2
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