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________________ कंदि 21. सूरो संगामसीसे वा संडे तत्थ 파 महावीरे डिसेवमाण फरुसाई अचले भगवं यत्था 22. अवि साहिए' दुवे मासे' छप्पि मासे'.. अदुवा अपिवित्था 1. 2. (कंद) भू 3 / 2 सक (सूर) 1/1 वि [(संगम) - (सीस) 7/1] अव्यय (संवुड) भूकृ 1 / 1 अनि अव्यय (त) 1 / 1 सवि (महावीर ) 1/1 (पडिसेव) वकृ 1/1 (फरुस) 2 / 2 वि (अचल) 1 / 1 वि (भगवन्त भगवन्तो+भगवं) 1 / 1 (री) ' भू 3 / 1 सक Jain Education International -> अव्यय (साहिअ ) 2 / 2 वि (दुव) 2/2 वि (मास) 2/2 [(छ) + (अप्पि)] छ (छ) 2/2 अपि (अव्यय) (मास) 2/2 अव्यय (अपिव) भू 3 / 1 सक = = पुकारते थे : योद्धा = संग्राम के मोर्चे पर = For Personal & Private Use Only = = ढका हुआ : वहाँ = जैसे = वे = = = = = महावीर सहते हुए कठोर को अस्थिरता-रहित = भगवान विहार करते थे = और = अधिक दो = मास तक = छ:, भी = मास तक = अथवा = नहीं पीते थे अकारान्त धातुओं के अतिरिक्त अन्य स्वरान्त धातुओं में विकल्प से 'अ' या 'य' जोड़ने के पश्चात् विभक्ति चिह्न जोड़ा जाता है। कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण: 3-137) और समय बोधक शब्दों में सप्तमी होती है। प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2 143 www.jainelibrary.org
SR No.002692
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages192
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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