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________________ = हर्ष को रीयति' अह (रति) 2/1 वि अभिभूय (अभि-भू) संकृ = विजय प्राप्त करके (री) व 3/1 सक = गमन करते हैं गमन करते रहे माहणे (माहण) 1/1 वि = अहिंसक अबहुवादी [(अ-बहु) वि-(वादि) 1/1 वि] = बहुत न बोलनेवाले 18. लादेहि (लाढ) 3/2 = लाढ़ देश में तस्सुवसग्गा [(तस्स)+ (उवसग्गा)] तस्स (त) 4/1 स उवसग्गा (उवसग्ग) 2/2 = उनके लिए, कष्ट बहवे (बहव) 2/2 वि = बहुत जाणवया (जाणवय) 1/2 = रहनेवाले लोगों ने लूसिंसु (लूस) भू 3/2 सक = हैरान किया अव्यय = उसी तरह लूहदेसिए [(लूह)-(देसिअ) 1/1 वि] = रूखे, निवासी भत्ते (भत्त) भूकृ 1/1 अनि = पकाया हुआ भोजन कुक्कुरा (कुक्कुर) 1/2 = कुत्ते तत्थ . अव्यय = वहाँ पर (हिंस) भू 3/2 सक = सन्ताप देते थे (णिवत) भू 3/1 सक 19. . अप्पे.. (अप्प) 1/1 वि = कुछ (जण) 1/1 = लोग णिवारेति (णिवार) व 3/1 सक = दूर हटाते हैं दूर हटाते थे लूसणए ... (लूसणअ) 2/2 वि 'अ' स्वार्थिक = हैरान करनेवाले को. 1. अकारान्त धातुओं के अतिरिक्त अन्य स्वरान्त धातुओं में विकल्प से 'अ' या 'य' जोड़ने के पश्चात् विभक्ति चिह्न जोड़ा जाता है। 1.2. देशों के नाम प्राय: बहुवचन में होते हैं। कभी-कभी सप्तमी के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग होता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-137) हिंसिंसु णिवतिंसु = टूट पड़ते थे प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग-2 141 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002692
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages192
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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