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अव्यय
= थोड़ा सा
साई
(साइ) 1/1 वि
अव्यय
= सोनेवाले = बिल्कुल = इच्छारहित
अपडिण्णे
(अपडिण्ण) 1/1 वि
14.
= पूर्णत: जागते हुए = फिर = बैठ जाते थे
संबुज्झमाणे पुणरवि आसिंसु भगवं उट्ठाए णिक्खम्म
(संबुज्झ) वकृ 1/1 अव्यय
(आस) भू 3/1 अक .. (भगवं) 1/1
(उ8) संकृ (णिक्खम्म) संकृ अनि अव्यय
- भगवान
= सक्रिय होकर = बाहर निकलकर = कभी-कभी = रात में
एगया
राओ
अव्यय
अव्यय
= बाहर
= इधर-उधर घूमकर
(चक्कम) संकृ (मुहुत्ताग) 2/1
= कुछ समय तक
चक्कमिया' मुहत्तागं 15. सयणेहि तस्सुवसग्गा
= स्थानों में
(सयण) 3/2 [(तस्स)+ (उवसग्गा)] तस्स (त)4/1 स. उवसग्गा (उवसग्ग) 1/2 (भीम) 1/2 वि (अस) भू 3/2 अक
भीमा . . आसी' ...
= उनके लिये, कष्ट = भयानक = (वर्तमान) थे
1. . .
पिशलः प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 834 समयबोधक शब्दों में द्वितीया होती है। कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-137) 'आसी' अथवा 'आसि' सभी पुरुषों और वचनों में भूतकाल में काम आता है। (पिशल: प्राकृत भाषाओं का व्याकरण पृष्ठ 749)
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
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