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________________ पतेलस' वासे राइंदिवं पि (पतेलस) मूलशब्द 7/1 वि (वास) 7/1 क्रिविअ अव्यय (जय) वकृ 1/1 (अप्पमत्त) 7/1 वि (समाहित) 7/1 वि (झा) व 3/1 सक जयमाणे अप्पमत्ते समाहिते = तेरहवें = वर्ष में = रात-दिन = ही = सावधानी बरतते हुए = अप्रमादयुक्त = एकाग्र (अवस्था) में = ध्यान करते हैं__ध्यान करते थे .. झाती .. पगामाए (णिद्दा) 2/1 = नींद को (का) अव्यय = कभी भी अव्यय = नहीं . (पगाम) 4/1 = आनन्द के लिए : सेवइ (सेव) व 3/1 सक = उपभोग करते हैं उपभोग करते थे या-जा-जाव अव्यय = ठीक उसी समय भगवं (भगवन्त-भगवन्तो-भगवं) 1/1 = भगवान उट्ठाए (उ8) संकृ = खड़ा करके जग्गावतीय [(जग्गावति)+ (इय)] = जगा लेते हैं(जग्ग-जग्गाव) प्रेव 3/1 सक. जगा लेते थे इय (अव्यय) = और अप्पाणं. (अप्पाण) 2/1 = अपने को किसी भी कारक के लिए मूलशब्द (संज्ञा) काम में लाया जाता है। (मेरे विचार से यह नियम विशेषण पर भी लागू किया जा सकता है) (पिशल : प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517) राइंदिवं-यह नपुंसकलिंग है। (Eng. Dictionary, Monier Williams) इससे क्रियाविशेषण अव्यय बनाया जा सकता है। (राइंदिवं) छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'ति' को 'ती' किया गया है। (पिशल: प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 137-138) 12 ॥ 138 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002692
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages192
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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