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________________ मिहु अव्यय = परस्पर = कथाओं में कहासु = इशारों में arint. समयम्मि णातसुते विसोगे अदक्खु एताई (कहा) 7/2 (समय) 7/1 (णातसुत) 1/1 (विसोग) 1/1 वि (अदक्खु) भू आर्ष 3/1 सक (एत) 2/2 सवि (त) 1/1 सवि (उराल) 2/2 (गच्छ) व 3/1 सक (णायपुत्त) 1/1 (असरण) 4/1 = ज्ञातपुत्र = शोकरहित = देखते थे = इन = वे (वह) = मनोहर को = करते हैं-करते थे से . उरालाई गच्छति णायपुत्ते असरणाए' . 3ज्ञातपुत्र = स्मरण नहीं 6. पुढविं = पृथ्वीकाय को , - और आउकायं (पुढवी) 2/1 अव्यय (आउकाय) 2/1 अव्यय (तेउकाय) 2/1 तेउकायं अव्यय वायुकायं (वायुकाय) 2/1 अव्यय = जलकाय को = और = अग्निकाय को = और = वायुकाय को = और = शैवाल को = बीज, हरी वनस्पति = त्रसकाय को = और = पूर्णतया पणगाई बीयहरियाई तसकायं (पणग) 2/2 [(बीय)-(हरिय) 2/2 वि] (तसकाय) 2/1 अव्यय सव्वसो अव्यय णच्चा (णच्चा) संकृ अनि = जानकर 1. मार्ग भिन्न गत्यर्थक क्रियाओं के कर्म में द्वितीया या चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग होता है। 134 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002692
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages192
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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