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________________ (पुट्ठ) भूकृ 1/1 अनि = पूछी गई अव्यय णाभिभासिंसु [(ण) + (अभिभासिंसु)] ण (अव्यय) अभिभासिंसु (अभिभास) भू 3/1 सक (गच्छ) व 3/1 सक = नहीं = बोलते थे = चले जाते हैं-चले जाते गच्छति णाइवत्तती [(ण)+(अइवत्तती)] ण (अव्यय) अइवत्तती' (अइवत्त) व 3/1 सक (अंजु) 1/1 वि = नहीं = उपेक्षा करते थे = संयम में तत्पर अंजू फरिसाई (फरिस) 2/2 दुत्तितिक्खाइं (दुत्तितिक्ख) 2/2 वि अतिअच्च . (अतिअच्च) संकृ अनि मुणी (मुणि) 1/1 परक्कममाणे (परक्कम) वकृ 1/1 आघात-णट्ट- [(आघात)-(णट्ट)गीताई (गीत) 2/2] दंडजुद्धाइं . [(दंड)-(जुद्ध) 2/2] = कटु वचनों की = दुस्सह = अवहेलना करके = मुनि = पुरुषार्थ करते हुए कथा, नाच, गान को= कथा, नाच, गान में लाठी युद्ध को= लाठी-युद्ध में मूठी युद्ध को= मूठी-युद्ध में मुट्ठिजुद्धाई [मुट्ठि-(जुद्ध) 2/2] 5. . गढिए (गढिअ) 2/2 वि = आसक्त को छन्द-मात्रा की पूर्ति हेतु यहाँ ह्रस्व स्वर दीर्घ हुआ है। (पिशलः प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 137-138) . कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-137) प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2 133 133 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002692
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages192
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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