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पाठ-4 आचारांग
अहासुतं
वदिस्सामि
अव्यय (वद) भवि 1/1 सक अव्यय
जहा
= जैसाकि सुना है = कहूँगा = प्रत्यक्ष उक्ति के आरम्भ
करते समय प्रयुक्त = वे (वह)
से
समणे
= श्रमण
भगवं
= भगवान
= त्यागकर
= जानकर
उहाय संखाए तंसि हेमंते अहुणा पव्वइए रीइत्था
(त) 1/1 सवि (समण) 1/1 (भगवन्त-भगवन्तो-भगवं) 1/1 (उ8) संकृ (संख) संक (त) 7/1 सवि (हेमंत) 7/1 अव्यय (पव्वइअ) भूकृ 1/1 अनि (री) भू 3/1 सक
= उस (में) = हेमन्त में = इस समय = दीक्षित हुए = विहार कर गए
अव्यय
- अब
पोरिसिं
(पोरिसी) 2/1
= प्रहर तक (तीन घण्टे की अवधि) = तिरछी भीत पर .
तिरियभित्ति' ... [(तिरिय)-(भित्ति) 2/1]
अर्धमागधी में ‘वाला' अर्थ में ‘मन्त' प्रत्यय जोड़ा जाता है। 'म' का विकल्प से 'व' होता है। विकल्प से त' का लोप और 'न्' का अनुस्वार हो जाता है। (अभिनव प्राकृत व्याकरण, पृष्ठ 427) कालवाचक शब्दों के योग में द्वितीया होती है।
कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम • प्राकृत व्याकरण, 3-137)
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
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