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पडिसाहरेज्जा आइण्णो खिप्पमिव
= पीछे खींचे = कुलीन घोड़ा
(पडिसाहर) विधि 3/1 सक (आइण्ण) 1/1 [(खिप्पं) + (इव)] (खिप्पं) अव्यय (इव) अव्यय (क्खलीण) 2/1
= तुरन्त = जैसे
क्खलीणं
= लगाम को
22.
अप्पा .
(अप्प) 1/1
.
= आत्मा . . = निस्सन्देह .
अव्यय
= सदा
खलु सययं रखियव्वो सविदिएहिं
= सुरक्षित की जानी चाहिए।
सुसमाहिएहिं अरक्खिओ जाइपहं
अव्यय (रक्ख) विधि-कृ 1/1 ' [(सव्व)+ (इंदिएहि)]
[(सव्व) वि-(इंदिअ) 3/2] (सु-समाहिअ) 3/2 वि (अ-रक्खिअ) 1/1 वि [(जाइ)-(पह) 2/1] (उवे) व 3/1 सक. (सुरक्खिअ) 1/1 वि [(सव्व)-(दुह) 6/2] (मुच्चइ) व कर्म 3/1 सक अनि
= सभी इन्द्रियों द्वारा = पूरी तरह से उपशमित = अरक्षित = जन्म-मार्ग की ओर = जाती है = सुरक्षित = सब दुःखों से = छुटकारा पाती है
उवेई
सुरक्खिओ सव्वदुहाण
मुच्चइ
1. 2.
छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'ई' को 'ई' किया जाता है। कभी-कभी तृतीया के स्थान पर षष्ठी का प्रयोग किया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-134)
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प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
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