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________________ . राग-दोसेहिं' समो = राग-द्वेष में = समान [(राग)-(दोस) 3/2] (सम) 1/1 वि (त) 1/1 सवि (पुज्ज) 1/1 वि =-वह पुज्जो 19. विविहगुणतवोरए [(विविह)-(गुण)-(तवोरअ) 1/1] अव्यय .. य निच्चं = अनेक प्रकार के शुभ परिणामों को, तप में लीन = तथा . = सदा.. = होता है = आशा से शून्य अव्यय ॥ भवइ ॥ निरासए ॥ निज्जरट्टिए. ॥ तवसा ॥ (भव) व 3/1 अक (निरासअ) 'अ' स्वार्थिक 1/1 वि . [(निज्जरा)+ (अट्ठिए)] [(निज्जरा)-(अट्ठिअ) 1/1 वि] (तव) 3/1 अनि (धुण) व 3/1 सक [(पुराण)-(पावग) 2/1] (जुत्त) 1/1 वि अव्यय [(तव)-(समाहि) 7/1] = कर्म-क्षय का इच्छुक = तप के द्वारा = नष्ट कर देता है = पुराने पापों को = संलग्न ॥ ॥ ॥ धुणइ पुराणपावगं जुत्तो सया तवसमाहिए 20. = सदा = तप-साधना में जया अव्यय = जब अव्यय = सर्वथा = छोड़ देता है चयई (चय) व 3/1 सक कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-137) समाहीए-समाहिए, विभक्ति जुड़ते समय दीर्घ स्वर बहुधा कविता में हस्व कर दिये जाते हैं। (पिशल : प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 182) पूरी या आधी गाथा के अन्त में आनेवाली 'इ' का क्रियापदों में बहुधा 'ई' हो जाता है। (पिशल : प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 138) 128 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002692
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages192
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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