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________________ वेराणुबंधीणि [(वेर)+ (अणुबंधीणि)] [(वेर)-(अणुबंधि) 1/2 वि] (महब्भय) 1/2 वि = वैर को बाँधनेवाले = महा भय पैदा करनेवाले महन्भयाणि 18. गुणेहि साहू अगुणेहऽसाहू = सुगुणों के कारण = साधु = दुर्गुण समूह के कारण = ही गेहाहि साहूगुण मुंचऽसाहू (गुण) 3/2 (साहु) 1/1 [(अगुणे)+ (ह)+(असाहू)] अगुणे (अगुण) 7/1 (ह) अव्यय असाहू (असाहु) 1/1 (गेण्ह) आज्ञा 2/1 सक [(साहू')-(गुण) मूल शब्द 2/2] [(मुंच)+ (असाहू)] मुंच' (मुंच) आज्ञा 2/1 सक असाहू (असाहु) 1/1 (वियाण) संकृ [(अप्पगं)+(अप्पएणं)] अप्पगं (अप्प) 'ग' स्वार्थिक 2/1 अप्पएणं (अप्प) 'अ' स्वार्थिक 3/1 (ज) 1/1 सवि = असाधु =3D ग्रहण करो = साधु के लिए, सुगुणों को = छोड़ो, असाधु = जानकर वियाणिया अप्पगमप्पएणं = आत्मा को, आत्मा के द्वारा = जो जो कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-137) कभी-कभी तृतीया के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-135) तथा वर्ग विशेष का बोध कराने के लिए एकवचन तथा बहुवचन का प्रयोग किया जा सकता है। पिशल : प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 689 समासगत शब्दों में रहे हुए स्वर परस्पर में हस्व के स्थान पर दीर्घ और दीर्घ के स्थान पर हस्व हो जाते हैं, (यहाँ साहु-साहू हुआ है) (हेम प्राकृत व्याकरण : 1-4) पिशल : प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 689 पिशल : प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 834, 837, 838 . 5. . प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2 127 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002692
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages192
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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