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वहई'. रहं
(वह) व 3/1 सक (रह) 2/1
अव्यय
दुब्बुद्धि
= आगे चलाता है. = रथ को = इसी प्रकार = दुर्बुद्धि = कर्तव्यों को . = कहा हुआ = कहा हुआ = करता है।
किच्चाणं'
(दुब्बुद्धि) मूल शब्द 1/1 (किच्च) 6/2 (वुत्त) भूकृ 1/1 अनि (वुत्त) भूकृ 1/1 अनि (पकुव्व) व 3/1 सक
वुत्तो
पकुव्वई' 17.
मुहत्तदुक्खा
[(मुहुत्त)-(दुक्ख) 1/2 वि]
= थोड़ी देर के लिए, दुःख = ही
अव्यय
हवंति
= होते हैं
कंटया अओमया
(हव) व 3/2 अक (कंटय) 1/2 (अओमय) 1/2 वि (त) 1/2 सवि अव्यय
= काँटे = लोहे से बने हुए
वि
तथा
अव्यय
तओ सुउद्धरा
(सुउद्धर) 1/2 वि
= बाद में = आसानी से निकाले जा सकने वाले = वाणी के द्वारा, दुर्वचन = कठिनाई से निकाले जा सकने वाले
वायादुरुत्ताणि
(वाया)-(दुरुत्त) 1/2] (दुरुद्धर) 1/2 वि
दुरुद्धराणि
छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'इ' को 'ई' किया गया है। किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द का प्रयोग किया जा सकता है। (पिशल : प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517) कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-134) पूरी या आधी गाथा के अन्त में आने वाली 'इ' का क्रियापदों में बहुधा 'ई' हो जाता है। (पिशल : प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 138)
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प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
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