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समीरियं रुप्पमलं
(पुरेकड) 1/1 वि (समीर) भूकृ 1/1 [(रुप्प)-(मल) 1/1]
= पूर्व में किया हुआ = झकझोरे हुए = सोने का मैल . = जैसे कि = अग्नि के द्वारा
अव्यय
जोइणा
(जोइ) 3/1
.15.
विणयं
= विनय में
पि
= जो
उवाएण चोइओ कुप्पई
(विणय) 2/1 अव्यय (ज) 1/1 सवि (उवाअ) 3/1 (चोअ) भूकृ 1/1 (कुप्प) व 3/1 अक (नर) 1/1 (दिव्व) 2/1 वि (त) 1/1 सवि [(सिरिं)+ (एज्जंति)] सिरिं (सिरी) 2/1 एज्जतिं (ए-एज्ज-एज्जंत-एज्जंती) वकृ 2/1 (दंड) 3/1 (पडिसेह) व 3/1 सक
= युक्ति के द्वारा = प्रेरित = क्रोध करता है = मनुष्य = दिव्य
नरो दिव्वं
= वह
सो सिरिमेज्जतिं
दंडेण
= सम्पत्ति को, आती हुई = डण्डे से = रोक देता है
पडिसेहए 16. दुग्गओ ..
वा
(दुग्गअ) 1/1 अव्यय (पओअ) 3/1 (चोअ) भूकृ 1/1
= दुष्ट हाथी = जैसे = अंकुश के द्वारा = प्रेरित
पओएणं . चोइओ
1.
2.
कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-137) छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'इ' को 'ई' किया गया है। प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग -2
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